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Posts of 20 to 29 March 2020 including Declaration of testing and experimentation , Corona etc

टीवी रामायण का तो पता नहीं, तुलसीकृत मानस मेें राम जरूर कहते हैं -
" जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,
ते नृपु अवसि नरक अधिकारी "

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कबीरा सोई पीर है - जो जाने पर पीर
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हम पीड़ाओं के सामूहिक शिकार है - एक भद्दे लोकतंत्र और आवारा मौलिक अधिकारों के पीछे के बदरंग चेहरों को पहचान नही पा रहें है - संविधान में निहित और वर्णित कर्तव्यों को और नीति निर्देशक तत्वों को भी कड़ाई से लागू नही करवाया जाता - तब तक यह बेख़ौफ़ आवारापन बना रहेगा देश में
अपने आसपास देखिये कितने लोग है जो सरकारी सेवा में है और इस समय जरुरी सेवाओं में व्यस्त है या ड्यूटी कर रहें है छोटे से छोटे जिले की आबादी 3 से 4 लाख तो होगी, जनसँख्या विस्फोट की अभी बात करना बेमानी है, पर इस 3 या 4 जनसँख्या के लिए कितने डॉक्टर्स है, पुलिसकर्मी है और प्रशासन के लोग है -यह सँख्या औसत के हिसाब से भी निकालेंगे तो न्यून या नगण्य होगी
एक हम है कि उत्पात मचाये हुए है नाक में दम कर दिया है, घूमना है, खरीदी करना है, जन्मदिन मनाने है , कर्फ्यू देखना है, भजन करना है सुंदर कांड करने है , जुम्मे की नमाज पढ़ना है, चर्च की प्रार्थनाएँ करना है, अरदास करने जाना है, प्रदर्शन करना है और इस सबके पीछे ताकत है - संविधान जो धर्म को मानने की छूट देता है - धर्म निरपेक्ष के बरक्स
सब हो - बिल्कुल हो, पर किसकी कीमत पर अपनी जान की या समाज की सामूहिक बलि देने को उतारू है आप - घर रहने में क्या दिक्कत है , आपको हंसी ठिठोली करने को नेट चालू है ना , घर के लोगों के साथ समय बीताईये ना - कुछ भी करिये पर बाहर मत निकलिए - इस समय सब भूल जाईये ना
थोड़ा गम्भीर होकर सोचिए कि इतने चंद लोग जो व्यवस्थाओं में लगे है - वे आपातकालीन व्यवस्थाओं से निपटे या भीड़ का मार्गदर्शन और निदर्शन करें - हमने अपने आकाओं पर कभी रिक्त पदों को भरने के लिए दबाव नही बनाया, बाद में तदर्थवाद हावी हो गया - हर कोई तदर्थ हो गया तो इस वृहद देश की स्थाई समस्याओं के लिए विजन और मिशन वाले स्थाई लोग कहाँ से आते
आज इन चंद मुठ्ठी भर लोगों के प्रति एहसान जताते हुए मौलिक अधिकारों को भूलिए और अपने कर्तव्यों की याद करिये - यह अनुशासन का पर्व है - संयम और उदारता बरतने की घड़ी है, आपके पार्टी और नेता प्रेम से ज्यादा आपके असली एवं व्यवहारिक देश प्रेम की जरूरत है - क्योंकि आपने जिसे भी चुना है देश के लिए चुना है , जब देश ही नही रहेगा तो आपकी निष्ठा और राजनैतिक प्रतिबद्धता का क्या अर्थ रह जायेगा
हम सबकी लापरवाही का नतीजा यह हुआ है कि करोड़ों भारत माताएं अपने नौनिहालों को लेकर दो - दो सौ किलोमीटर सूखी छाती से चिपकाए पैदल चल घर पहुंचने के उपक्रम कर रही है, करोड़ो कर्मवीर और श्रमिक दिन- रात अथक चलकर घर पहुंचने की जद्दोजहद कर रहें है , बच्चे सड़कों पर है बगैर पेट में एक दाना लिए चल कर घर लौटने को है , बुजुर्ग खाँसते हुए धूप बरसात सहकर लौट रहे है घरों की ओर - पर आपकी उद्दण्डताओं के कारण कर्फ्यू लगाना पड़ा है देश में और ये सबसे ज्यादा भुगत रहे है
शर्म करिये जरा, सोचिए दिल्ली से बिहार के पूर्णिया की दूरी या नागपुर से जबलपुर की दूरी - बड़ा मजदूर वर्ग पैदल चल रहा है - कैसा भारत बना दिया है हमने और यह सब ढाँकने और सुचारू रूप से मैनेज करने को अरबों रुपये जो हमारे घाम और मेहनत से बने है - खर्च हो रहें है, सरकार का नही - हमारा आपका रुपया है यह - इतनी समझ नही आपकी, कमाल है
जिस देश में हर राज्य में लगभग प्रबंधन के श्रेष्ठ आईआईएम है, आईआईटी है, हजारों महाविद्यालय है, सैंकड़ों विश्व विद्यालय है , हजारो शोध संस्थान और विश्लेषणकर्ता है - बावजूद इसके हमारी योजनाओं और क्रियान्वयन का यह हाल है - 73 वर्ष की आज़ादी , जग सिरमौर बनने की होड़ - उफ़
मित्रों , घर में रहिये हो सकता है कि 25 दिन बाद हममें से कोई यह पढ़ने को भी शेष ना रहे , मैं भी लिखने या कोसने को ना रहूँ - आपके घर वीरान हो जाये , मोहल्ले सूने और गलियां अंधेरे बंद "डेडएंड" में तब्दील हो जाये फिर क्या होगा - किसके झंडे लेकर घूमेंगे, कैसा उत्सव मनाएंगे
संयम, सहानुभूति, समानुभूति और समर्पण जैसे मूल्य सीखे है ना - आईये हम अपने को तिरोहित कर दें वरना फिर किसी नूह को एक नाव लेकर निकलना होगा और याद रखिये अबकी बार उसकी नाव में हर प्रजाति का एक जोड़ा तो होगा पर मनुष्य नही

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प्रेम बाड़ी ना उपजे
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संवाद, प्रलाप, संताप, अवसाद, दूरी, आलाप, अनहद नाद, एकांत, निर्जनता जैसे शब्द लगता है कि जीवन का स्थाई भाव बनते जा रहें है
न पढ़ने की इच्छा, न लिखने का जुनून, फ़िल्म, गीत, खेल, गपशप, ना कुछ और - एक अजीब सा तनाव तारी हो गया है दिल दिमाग पर - एक मेंटल असाईलम यानि पागलखाने में कैद है जिंदगी
कोरोना का जो होगा सो होगा पर 15 अप्रैल के बाद समाज में मानसिक रोगियों का एक वृहद वर्ग ऐसा तैयार होगा -जो स्वकेन्द्रित, स्वसंचालित और स्वेच्छाचारी होगा - निरंतर हाथ धोता, अपनो से दूरी रखता, शंका और अविश्वास से परखता और संदेह के सर्वोच्च शिखरों पर अपने को अभेद्य किलों में कैद करता सा
यह तमाम लड़ाईयों और असंख्य छोटे बड़े विश्व युद्धों की विभीषिकाओं को झेल चुके और मौत का तांडव देखकर उबरे समाज से घातक होगा जिसे ना कोई कार्ल युंग लिख सकेगा ना फ्रायड - अब हमारे पास ज्यां पाल सात्र नही ना हक्सले और ना कोई बनना भी चाहेगा
इस उत्सव प्रिय और अति सामाजिक भारतीय समाज की ऊब तीन चार दिन में ही जिस तरह से सामने आई है - वह बेहद चिंतनीय है और डर यह है कि खुदा ना खास्ता यदि 15 अप्रैल के बाद एक दिन भी यह तथाकथित कर्फ्यू आगे बढ़ा तो लोग अपनी मौत की कीमत पर सड़कों पर आ जाएंगे - बाकी सब तो छोड़ ही दीजिये
फेसबुक पर प्रबुद्ध लोगों से लेकर आम जनों के पोस्ट [ यहाँ तक कि मैं खुद भी ], एक संक्रमित , बीमार और असहाय लाचार हो चुके नैराश्य भरे समाज के प्रतिफल नजर आ रहें है और यह दर्शाता है कि हम आदर्श रूप में भले ही कितना मुक्ति, आध्यात्म, वैराग्य, निर्मोही,सन्यास, जप, तप , ध्यान, विपश्यना या त्याग की बात करें - योग और सन्धानों की बात करें पर वस्तुतः हम निहायत ही कमज़ोर, पाखंडी और बेबस समुदाय है - जो कबीलाई संस्कृति में ही जी सकते है
और शायद यही हमारी ताकत है -लड़ना झगड़ना, तर्क वितर्क, राजनीति अनाचार और इसी से उपजता है प्यार और संगठित रहने की क्षमता, वैचारिक मतभेद, आगे बढ़ने की होड़, प्रतिस्पर्धा, गला काट दौड़, निंदा, स्तुति और ऐसे तमाम मूल्यों के बीच जीवन का अर्थ तलाशते और एक दिन चुपचाप मौत की नींद में सो जाने वाले हम लोग ऐसे ही है सहज, सरल और प्रेम, ईर्ष्या, द्वंद और कटुता से भरे हुए और मुझे "हम सब " एक समुदाय के रूप में ऐसे ही स्वीकार्य है
सबसे लड़ता हूँ पर अपने भीतर सबको गहराई से महसूस करता हूँ - सबके लिए प्रेम है सहानुभूति और समानुभूति है और लड़ने झगड़ने से हर कोई दिमाग मे रहता है और उनके तर्कों से सीखता हूँ पर अब इस निर्जन वास में बेहद अकेला महसूस कर हैरान हूं कि कैसे चार दिन निकल गए
मित्रों सम्हालिये अपने को और विश्वास रखिये कि ज़िंदा रहे तो इंशा अल्लाह फिर मिलेंगे - स्थगित जीवन का संगीत और राग भैरवी - झपताल और काली चार से निकल कर गाईये और झूमते रहिये
गुरुजी मैं तो एक निरंतर ध्याऊँ जी
दूजे के संग नही .....

या
माझ माहेर पंढरी ....
या
लग जा गले कि फिर ये हसी रात हो ना हो
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"नाटक के पहले भाग में जो बंदूक दिखाई देती है उसका उसी नाटक के तीसरे हिस्से में दागा जाना अवश्यम्भावी है"
◆ अंतोन चेखव
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शायद अभी इस पूरे नाटक का तीसरा अंक शेष है - ना जाने यवनिका के आँचल में और क्या है
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मित्रों
आज प्रधानमंत्री जो भी बोलेंगे उसको मेरा अभी से समर्थन है, बस बता देना करना क्या है
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गम्भीरता से पूरे होशोहवास में यह घोषणा कर रहा हूँ कि यदि एम्स, Institute of Immunology या अन्य किसी भी संस्था को टीके बनवाने हेतु जीवित मानव की जरूरत हो तो मैं निशुल्क अपना जीवन, शरीर देने को तैयार हूं

मैं शक्कर , ब्लड प्रेशर का गम्भीर मरीज हूँ और लगभग 54 का हो चला हूँ - कुल मिलाकर Highly Vulnerable हो सकता हूँ - इसलिए देश मे गम्भीर संकट को देखते हुए मैं प्रस्तुत हूँ
I am damn serious on this issue. Ultimately some body has to initiate and i here by present my self. I will not charge any amount. Friends who know or work in R & D please proceed further and fulfill the formalities as soon as possible.
[ इस पोस्ट को अभी पब्लिक किया है इसे शेयर करिये ताकि किसी न किसी के माध्यम से मुकाम पर पहुँचे और सम्भवतः मैं, मेरी देह काम आ जाये - प्रचार प्रसार की लालसा कतई नही है मित्रों यह ध्यान रहें ]
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जैसे "एक डाक्टर की मौत" अप्रतिम फ़िल्म थी वैसे ही हाल ही में अपने एक दोस्त यशस्वी लेखक / पत्रकार की बौद्धिक मौत से सदमे में हूँ
अब समझ आया कि आस्थाएं और विश्वास लोगों के होते है प्रतिबद्धताएं नही - पापी पेट, नौकरी और मजबूरी इंसान से सब करवा लेती है फिर यह तो विशुद्ध जुझारू पत्रकार ही था - कस्बों से रिपोर्टिंग करते हुए दर दर की खाक छानते हुए अपना मकाम बनाया था उसने
अक्षर से शब्द और फिर भाषा का संसार बुना था जिसमे चमत्कार ही चमत्कार थे और सम्भवतः इसी मायावी लोक में कुछ आयोजन , कुछ सरकारी मठों और कुछ निजी गढ़ों में फंस गया - चुलबुली महिलाओं के झाँसे में आने से मुगालते हो गए हो
और निजी स्पेस, जगहों का मोह भी आदमी से सब करवा लें जाता है, मराठी में हम कहते है कि जीवन में अक्सर हम पोपट बनते ही है और कोई चतुर काग या नार या घाघ अपने साथ बहा ले जाता है उद्दाम वेग से
कुछ नही कहना और - दुआएँ, प्रार्थनाएं
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A Literary Appeal
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Wash Hands Like LADY MACBETH.
Seclude Yourself Like MISS.HAVISHAM.
Postpone Your Tasks Like HAMLET.
Eat Like FALSTAFF.
Wear Masks like BENEDICT.
Be Proud Like DARCY and Avoid Dancing With LIZZIES.
Don't Touch Or Steal Others' Kerchiefs Like IAGO.
Unlike ROMEO, Avoid Meeting JULIETs Who wait in the Balconies. Let Them Wait Till Morrow.
Don't Wander Around Like Ulysses.
Be Wise Like Beatrice.
Let The West Wind Blow
Listen to Nightingales,
Admire Daffodils.

Stay Home, Stay Safe.
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जनता कर्फ्यू के आगे
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कल के थाली पीटो अभियान, 2024 के चुनाव जीतने की अग्रिम खुशी और शर्मनाक हरकतों के बाद 20 घण्टों की प्रशासनिक और मोदी जी की अपील व्यर्थ रही, हम मूर्खों ने मान लिया कि 12 - 14 घँटे घर मे रहकर कोरोना की त्रासदी खत्म हो गई
यह कर्फ्यू अब "जनता कर्फ्यू नही प्रशासनिक कर्फ्यू " हो कम से कम 31 मार्च तक पूरे देश में अनिवार्य रूप से - सुयोग्य पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में और इस सावधानी के साथ कि पुलिस की सुरक्षा भी सर्वोच्च हो स्वास्थ्यगत :-
●उन्हें हर तीन घँटे में विश्राम आवश्यक
● दवाई / सेनिटाइजर देना
● पर्याप्त मास्क आदि का प्रावधान हो
● कर्फ्यू के दौरान पौष्टिक भोजन
● जीप, छायादार वाहनों की व्यवस्था हो

उन्हें सभी प्रकार की भीड़, ध्वनि विस्तारकों को जब्त करने की प्रशासनिक ताकत, वाहनों को राजसात करने की ताकत और आवश्यक वस्तुओं के नाम पर दुकान खोल बैठे अड्डेबाजी कर रहे लोगों को भगाने की ताकत दी जाए
[ ताकत से यहाँ तात्पर्य state sponsored power से है ]
वे भी हमारे ही वृहद परिवार के हिस्से है पर बुजुर्गों की तरह जो सही ग़लत बता सकते है
स्थिति बहुत गम्भीर है और कल के जश्न को देखते हुए लगता है कि हम अभी मैच्योर नही कि किसी जननेता की अपील को सही मायनों में समझ सकें - सीधी सी भाषा में कहूँ तो लातों के भूत बातों से नही मानते
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ट्रेन बंद कर दी
75 शहर लॉक डाउन है
कई राज्य भी इसी तर्ज पर है
डॉक्टर्स, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ है नही
लेब नही, दवाईयां नही, बजट नही ढाँचे नही
गम्भीरता से मुद्दों को लेने के बजाय देश को जमुरा बना रहे है और कार्यवाही के नाम पर कुछ नही - धन्य है सरकार बहादुर - बहुत खूब , हम भी सभी सेवा कर्मियों के प्रति आजीवन आभारी रहेंगे पर नौटँकी बाज नही हम
कुछ नही कर पा रहे तो बंद करने के अलावा कोई विकल्प नही, डर यह है कि लोग अस्पताल जाएंगे तो दंगे, प्रदर्शन होंगे, तोड़फोड़ होगी - लोग सवाल पूछेंगे और जवाब नही है किसी के पास
अब कांग्रेस को भी दोष नही दे सकते 6 साल कम नही होते और अधिकांश राज्यों में खुद है या गठजोड़ की सरकार और जहां नही वहाँ रुपये की महिमा से खरीद ली
तो घण्टा बजाने के अलावा है क्या और सरकार के पास , जो लोग आज थाली और घण्टा बजा रहें है उनके हाथ में आखिर में सिवाय 🔔🔔🔔 के कुछ आना नही
पहले कार्यकाल में बड़ी आपदाओं से निपटे है आपकी ही सरकार ने इससे बड़े मामले भूकम्प हो या केदारनाथ त्रासदी तब ताली नही बजाई, घँटे नही बजे - आज स्वास्थ्य विभाग पर ये अचानक मेहरबानी क्यों - इमोशनल अत्याचार करके उन्हें चुप रखने की साजिश कि वे व्यवस्थागत कमियां जनता को ना बताएँ और बीमा कंपनियों का फायदा करवा दें इस दौर में
बवासीर के मरीज को शँख बजाना मना है और इस देश को बवासीर की बड़ी बीमारी है बजाइये घण्टा, गाली दीजिये आपकी समझ ही उतनी है ना घण्टा जितनी तभी थाली और तालियां पीट रहें है
आईये गाली दीजिये और अपना कूड़ा कचरा फैलाइये
आभारी हूँ कि इसे लिम्का गिनीज बुक में नाम लिखवाने की जिद नही की कम से कम उतनी मेहरबानी की - धन्य हो गया देश
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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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