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Posts between II and III week of April 2019

जो लेखक, कवि, कहानीकार, आलोचक और बाकी के बकैती करने वाले अभी चुप है उन्हें 23 मई के बाद औकात दिखाकर ससम्मान दिखाया जाएगा कि अब ज्ञान पेला तो सारी बुद्धिजीविता एक झटके में सड़क पर ला दी जाएगी
हिंदी का लेखक निहायत दोगला, फटटू, अवसरवादी और घटिया है और दोयम दर्जे का मक्कार , सालभर क्रांति करेगा और जब बोलना लिखना है तो दड़बे में जाकर बैठ जाएगा - ( मुआफ़ कीजिये ) बीबी के पल्लू में या पाली हुई माशूकाओं के हलक में
ये साहित्य की अर्धविकसित , मानसिक रोगों से ग्रस्त संतानें है जिन्हें लकवा मार जाता है और हर समय रीढ़ विहीन रहकर ये सिर्फ आपसी लेनदेन और तमाम तरह की सुविधाएं भकोसने ने व्यस्त रहते हैं
कल यहां मुम्बई में टाटा सामाजिक संस्थान में एक कवि मिलें जो बोलें कि " मैं एकाकी महिलाओं के प्रेम पर काम कर कविताएं लिख रहा हूँ" सातारा के मूल रहने वाले ये महाशय एक विचारधारा विशेष के ध्वज लेकर दौड़ रहें है। पूछा कि अपने क्षेत्र में क्या काम कर रहें है विचारधारा को लेकर तो बोले लजाते हुए कि " छह स्त्रियां मिली है जो एकल है और उनके साथ उठ बैठ रहा हूँ - कुछ कविताएं दिवाली वाङ्गमय के लिए तैयार कर रहा हूँ - आप हिंदी अनुवाद कर हिंदी पत्रिकाओं में छपवा देंगें क्या " मन तो किया कि चार जूते यही लगा दूं पर सरकारी मास्टर था जबरन ही ' शासकीय कार्य मे बाधा की शास्ति भुगतना पड़ती '
मजेदार यह कि औरतें भी झंडाबरदार तो है खूब जेंडर और समता की बात करेगी पर सुई वही अटकती है जहां जाकर प्रिय , आराध्य और सात जन्मों के पापनाशक कहें
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एक स्त्री जो जानवरों से प्रेम करती थी और जानवरों से सहानुभूति रखती है उसके व्यवहार में कितना सुखद परिवर्तन आ गया
लेमार्क, डार्विन, मेण्डल सही कहते थे - धीरे धीरे शरीर, मन , विचार और कर्म वैसे हो ही जाते है जैसा आप सोचते विचारते और व्यवहार करते हो
अब वह जानवरों टाईप बोल समझ रही है तो इसकी गलती नही है मेनका को 1977 याद करना चाहिए जब वह नितांत अकेली और एक इंसान थी - संजय की मौत के बाद, फिर इंदिरा जी को याद करना चाहिए, अपने देवर देवरानी को याद करना चाहिए कि कैसे अर्ध विकसित शिशु को पालने पोसने में परिवार ने मदद की और इसके लड़ाई करने के बाद भी इसे पर्याप्त हिस्सा देकर शांति से घर से विदा किया
पेटा कानून बनाने वाली आज जिस रूप में है सहर्ष स्वीकार है और हमें अब चिंता नही करनी चाहिए कि देश मे विज्ञान, शोध का भविष्य नही है जिसे जेनेटिक विज्ञान में शोध करना हो वे साक्षात मेनका से मिलें और देखें कि इसी काया में कैसे डीएनए बदलते है - दिल, दिमाग़, विचार और भाषा व्यवहार के स्तर पर
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श्रीराम नवमी की सभी को बधाई
देश के आदर्श और मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम आज भी टेंट में बैठे है और कांग्रेस भाजपा की लड़ाई में ना मन्दिर बन पाया ना कुछ हो पाया बल्कि राम नाम को सरकारों ने इतना छिछला और सस्ता बना दिया कि अब अपने ही देश में राम शब्द राजनीति हो गया
दरअसल कोई ना राम चाहता है और ना मन्दिर - क्योकि जब राम राज्य होगा, मन्दिर होगा तो रावण असुर बचेंगे ना विभीषण और ना रामनाम की चादर ओढ़े धूर्त कपटी, इसलिए आइये श्रीराम को अपने दिल मे जगह दें और उन सबको लताड़े, धिक्कारे जो राम के नाम पर राजनीति करते है
लोक जनमानस में जो राम है वह मेहनतकश, परिवार के प्रिय, कर्तव्यनिष्ठ पिता,पुत्र और पति और भाई है, वे दयालु और प्रजा के हर वर्ग से सम्बंध रखने वाले है वे राजनीति की नही लोकभाषा बोलते है वे नीति की बात करते है, रावण को सम्मान देते है वे शिक्षकों को साधु सन्यासियों को इतना सम्मान देते है कि सम्मान शब्द छोटा पड़ जाता है
वे त्याग की मूर्ति है अपने समस्त मानवीय गुणों और कमजोरियों में रहकर राजधर्म का पालन राज बनाये रखने और जनहित साधने के लिए करते है, ना वे ठिठोली में व्यस्त है ना शेखी बघारकर रावण की तरह अपनी सत्ता, ताकत और व्याभिचार में मदमस्त है, मितभाषी और मृदुल स्वभाव के राम सहज सरल और विशाल हृदय वाले है
बस राम को राम ही रहने दो, दूरदराज़ के इलाकों में मैंने लोगों को राम को जीवन में अपनाते हुए आज के इस दौर में भी देखा है, मेरे अपने घर में राम के आदर्श और उदाहरणों से रोज मर्रा की समस्याओं को उद्धत कर सुलझाते देखा है , राम से ही कल्याण हुआ है देश में आज जो उच्च सामाजिक मूल्य है वो उन ग्रन्थों से आये है जिन्हें वाल्मीकि या तुलसीदास ने रचा है और कोई भी ताकत अपने कुत्सित इरादों और घृणित राजनीति के लिए उन मूल्यों को ना बदल सकता है ना छेड़ सकती है
आइये राम को जियें , रामराज्य के आदर्श को अपनाने का प्रयत्न करें और उन सबको जवाब दें जो राम के नाम पर हमें बांट रहें हैं राम के नाम पर राम से बड़ा खुद को मानकर आत्मश्लाघा में व्यस्त है
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हास्य कवि प्रदीप चौबे जी नही रहें
बहुत दुखद खबर है , ग्वालियर जाओ और उनसे ना मिलो, तो बहुत अजीब लगता था
बेटे का सदमा शायद सह नही पाए थे, अभी छह माह पूर्व ही गुजर गया था
सुरेश तोमर जी, भाई पारितोष मालवीय, तरुण भटनागर जी, महेश कटारे जी , पवन करण जी और कुछ मित्रों के साथ हम अक्सर उनके पहले मंजिल वाले फ्लैट पर मिलते और वही महफ़िल सजती थी
आलपिन संग्रह मुझे बहुत प्यार से दिया था, यह खबर बहुत दुखदायी है
अग्रज प्रदीप जी भले ही हास्य रँग के कवि हो पर इतने सहज, और सह्र्दयी मनुष्य थे कि उनके जैसा इंसान मिल पाना बिरला ही होगा, हिंदी के क्लासिक कवियों के बारे में उनकी जानकारियां और स्मृतियाँ बहुत सशक्त थी , वे कविता की उस परम्परा से आते थे जो गहरा लम्बा असर छोड़ती है
उनके जाने से हिंदी को अपूरणीय क्षति हुई है, उनकी स्मृति को नमन और श्रद्धांजलि
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मुम्बई आया तो सोचा कि विवेक ओबेरॉय से मिलकर बधाई दे दूँ पर अभी पता किया तो घर का माली बोला -
◆ कल दिल्ली से फुनवा आये रहा , बबुआ को बहुत डांटे है मोदी जी कि केतना घटिया काम किये , बो बोले कि फिलिम रिलीज़ हो गया तो कोई तड़ीपार की मेहनत, ईवीएम की सेटिंग और सब बर्बाद हो जाएगा
◆ कहत रहें अब केंचुआ को डपटना पड़ेगा कि रोक लगाओ इस फिलिम पर
◆ साहब मोदी जी ने विवेक बाबा को डाँटा और बोला कि किसी मीडिया के दल्ले से बात की तो लोया को याद करना
◆ बस विवेक बाबा घर से भाग गए है कल से बहुत फोन बज रहे हैं
◆ काहे की फिलिम थी बाबू, उसका रुपया भी नही मिला, विवेक बाबू एक ठो ऑटो में लोकल का पास लेकर भागे है, फिलिम से चुनाव का क्या रिश्ता है बाबू
◆ कोई डायरेक्टर आये रहा आज भोर में ही और अपने चड्ढी बनियान लेकर भाग गया यहां से - जो सूख रहें थे पिछवाड़े में
◆ ई मोदी कौन है बाबूजी, कोई बड़ा एक्टर है का विवेक बाबू से, और ऊ बुड़बक वाला चैनल भी नही दिख रहा कल से - सच यह है कि बहुत शांति है कल से
मैं वापसी का टिकिट करवा रहा हूँ
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यात्राएँ हमें अंततः एक माया लोक में अस्थाई रूप से ले ही आती है और हम चमत्कृत से होकर अपने प्रारब्ध को खोजते रहते हैं
अपनी परिस्थितियों, दुख, दारुण और वीभत्स से श्रृंगार, वात्सल्य के बीच एक अनजाने लोक में हम भटकते हुए उहापोह के बीच समन्वित होने की कोशिश करते ही है तब तक भरम टूट जाता है और तिलस्म अपने सम्पूर्ण भद्दे स्वरूप में सामने आ जाता है
जीवन यात्रा, खोज और प्राप्य के बीच की तुष्टि है और इस सबके बीच हम कही ना कही होते, रहते, गुजरते और निरपेक्षता से देखते - सीखते रहते है और इसी में सब समाया हुआ है
मुम्बई में सुकून का एक हफ़्ता
अपने #Sharwil के संग उसके पहले जन्मदिन पर
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पहले ही मुआफी की दरकार
कुछ भयानक फ्रस्ट्रेटेड (माफ कीजिये ) दलित युवाओं से कन्हैया की सफलता देखी नही जा रही वे जिस अंदाज़ में विरोध कर रहें है बेहद कायराना और शर्मनाक है , 70 लाख का चंदा दिख रहा है इन्हें
दुर्भाग्य कि ये सब भी सरकारी टुकड़े तोड़कर, फेलोशिप लेकर और आरक्षण की बैसाखी लेकर पहुंचे है - यह लिखते हुए अच्छा नही लग रहा पर इन्हें जो जलन ईर्ष्या और डाह हो रहा है वह शोचनीय है
दुर्भाग्य कि इन निकम्मों से तो कुछ हुआ नही सिवाय अपनी रोज बदलने वाली माशूकाओं की तस्वीरें यहाँ चैंपने के और कन्हैया के दोस्त मित्र आदि आज बुलंदी की तरफ है तो इनके तन बदन में आग लगी है
साले सब फर्जी दलित आंदोलनकारी और चेंज एजेंट है, ये दलितों के नाम पर दलितों के नए शोषक है जो बकैती कर सकते है दिलीप मंडल जैसे कुंठित के चरण रज ले सकते हैं बल्कि चरणामृत पीकर बैठे हैं
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मोदी जी, आपसे वीर शहीद जवानों के नाम पर वोट की भीख की उम्मीद नही थी, अब सब एकदम साफ़ है कि पुलवामा अटैक एक षड्यंत्र था और आपने स्पष्ट कर दिया कि सेना को आपने आखिर में ना मात्र इस्तेमाल किया बल्कि आपने अधिकांश लोगों की आशंका के अनुसार चुनाव के ठीक पहले यह सब सुनियोजित षडयंत्र के तहत किया गया था, इतनी बड़ी फर्जीकल स्ट्राइक और कोई भी सबूत नही - महान आश्चर्य है
43 जवानों की हत्या, सर्जिकल स्ट्राइक का झूठ, अभिनंदन का ड्रामा और सारी जनता की मांग के बावजूद भी आपकी सरकार ने एक भी सबूत नही दिया आखिर क्यों
आखिर हताशा क्यों , आप सेना को चुनाव में घिस लायें, बीफ, लिंचिंग, साम्प्रदायिक शक्तियों को ताकत देना, दलितों का संहार करके आपका पेट नही भरा जो आप 18 - 19 साल के किशोरों को बरगला कर पुलवामा में मरें जवानों की कुर्बानी का वास्ता देकर खुले आम आप वोट की अपील कर रहें है , बल्कि दबाव डाल रहें है - छि
आप देश के मुखिया है या कुछ और , यही राष्ट्रवाद है, यही है दीनदयाल जी, अटल जी , आडवाणी और जोशी जी की भाजपा, यही है संघ के समर्पित कार्यकर्ता की समझ - बेहद शर्मनाक है इस तरह के भाषण
चुनाव आयोग , सुप्रीम कोर्ट और यहां तक कि राष्ट्रपति भी चुप है जो सेना के सर्वोच्च कमांडर है भी चुप है - आखिर हो क्या रहा है इस देश में
अभी ये इनका हाल है कल जीत गए तो कितना सत्यानाश और करेंगें - किसी ने सोचा, दिनभर पाक पाक करते रहते है इतना तो इमरान भी नही बोलता होगा - 5 सालों में एक भी कोई काम किया हो तो उसकी बात करके बताओ
संकल्प पत्र एक धोखा है, धक्का मारो मौका है
अफसोस कि संघ, भाजपा और इसके आनुषंगिक संगठन भी बेहद डरे हुए है और सब लोग चुप है
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मोदी जी यह बात एक दिमाग़ वाले समझदार इंसान की तरह समझ लो कि तुम्हारी अहमक किस्म की बातों में अब कोई आने वाला नही है
भारत की ही पैदाईश हो ना, इतना पाक पाक पाक बोल रहे हो कि अब पाकी होने का शक हो रहा है, या आडवाणी की तरह मुहाजिर हो पाक से
पाकिस्तान इतनी बार बोल रहे हो कि इमरान और पाक सेना के कारण तुम्हारी पार्टी को दस्त लगें हो, दिमाग़ पर भयानक गर्मी चढ़ गई है आराम करो कैरी का पना पियो, पाकिस्तान सपने में आ रहा है , कभी अपनी माँ, भारत माता और देश को भी याद कर लो - इतने भरमा गए कि पाक के अलावा तहज़ीब और भाषा की सीमा भी लांघ गए, इतनी सत्ता की भूख , इतनी बेइज्जती सहकर भी समझ नही आ रहा कुछ, धिक्कार है ऐसी समझ और अक्ल पर
अरे लातूर मराठवाड़ा में पानी की समस्या है यह ठाकरे और देवेंद्र ने बताया नही
इतना समझ लो जितना पाक पाक करोगे उतना ही तुम्हारा इस्लामीकरण होता जाएगा डर यह है कि 19 मई तक नमाज़ ना पढ़ने लगो
पुलवामा के नाम पर वोट मांगकर अब सबसे कमजोर और दोमुंहे नकली राष्ट्रवादी तो साबित हो ही गए हो, सब नाटक था, हिम्मत हो तो सबूत बताओ सर्जिकल स्ट्राइक के
शर्मनाक माहौल है और एक परेशानमंत्री ने भाषा , सभ्यता और संस्कृति की मर्यादाएं तोड़ दी है और अब तुम लोगों की हताशा, हड़बड़ाहट दिखा रही है कि हार की चोट और झटका दिमाग़ में चढ़कर बोल रहा है
लोग नारे लगा रहे है चौकीदार चोर है इससे ज्यादा उन सब लोगों का अपमान क्या होगा जो सच में चौकीदार लिखकर चोरों की बारात में शामिल हो गए है अपने बच्चे जब पूछेंगे कहेंगे कि " मेरा बाप चोर है " तो मोदी को यही सब लोग पुष्प अर्पित करेंगे
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आज मुहल्ले में एक 72 वर्षीय बूढ़े का निधन हो गया
श्मशान में लोग चर्चा कर रहें थे कि रामलाल जी जब पैदा हुए तो डेढ़ किलो के थे और आज चार काँधों पर उठाकर लाये तो काफी भारी थे लगभग सत्तर किलो के होंगे
एक उनकी ही उम्र का बूढ़ा बोला देश में और कित्ता विकास चाहिये, रामलाल डेढ़ किलो का था और आज डेढ़ किलो से सत्तर किलो का होकर मर गया और इस बढ़े हुए वजन का पूरा और सारा श्रेय मोदी जी को ही जाता है, उनके काल में ही यह सम्भव हुआ
सब सुनकर हैरान हो गए और अग्नि शैय्या पर पड़े रामलाल जी का मुर्दा बोल पड़ा
हर - हर मोदी, घर - घर मोदी
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भाजपा को बिल्कुल वोट ना दें
महाभ्रष्ट और महाधूर्त गैंग है जो सुप्रीम कोर्ट में धन के स्रोत, 600 आलीशान भवनों की कहानी, दो कौड़ी के नेताओं के हवाई जहाजों में उड़ने की कहानी बताने को तैयार नही और ऊपर से राफेल में तत्कालीन रक्षा मंत्री, वर्तमान रक्षा मंत्री और सरगना ने क्या गुल खिलाकर अम्बानी जैसे नौसिखिए को ठेका दिया
भगाओ इन नकली फर्जी देशभक्तों को , असली गद्दार ये ही है
ये सत्ता में आये तो खुले आम लूट होगी, मत भूलना नोटबन्दी, नकली फर्जीकल स्ट्राइक, पुलवामा, नक्सल हमले, बेरोजगारी, बीफ को लेकर हत्याएं मोब लिंचिंग, दलित अत्याचार, आरक्षण की फर्जी वकालत, एट्रोसिटी एक्ट , 370 की असफलता, 15 रुपये जेब से छीनने की घटिया हरकत बजाय 15 लाख देने के
सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग से लेकर रिजर्व बैंक तक जैसी संस्थाओं को कमजोर करने की हरकतें
स्मृति ईरानी जैसी झूठी मक्कार फर्जी शिक्षा मंत्री, नकली एम ए पास जिसके पास ना डिग्री ना फर्जी स्ट्राइक के सबूत, गुंडे मवाली बलात्कारी मंत्रियों की फौज जो मौज करती रही
पांच साल में जिंदगी भर से ज्यादा घूम लेने वाला नरेंद्र मोदी, लाखों कपड़े बदलने और अभिनय का शिखर पुरुष, साक्षी महाराज से लेकर अनंत कुमार जैसे नगीने जो संविधान बदलने को उतारू है
एक बार अपने निकम्मे बेरोजगार बच्चों के चेहरे देखना जिनके आगे जिंदगी नही मौत का तांडव है और ये पार्टी सुविधा की बात के बजाय बार बार पाक पाक का नाम लेकर नमाज पढ़ती है, जो राम का ना हो सका वो आपका क्या होगा
योगी, भोगी, शिवराज, रमनसिंह, पियक्कड़ वसुंधरा से लेकर कंडोम गिनने वाला इनके आईकॉन है
सिंहस्थ से लेकर स्मार्ट सिटी के नाम पर अरबों रुपया जो खा गई रँगा बिल्ला की जोड़ी उसका क्या भरोसा क्योकि एक साल में जिसका लड़का 800 गुना सम्पत्ति बढ़ा लें उसका क्या ऐतबार
चुनावी टिकिट्स में कांग्रेसी वंशवाद को पछाड़कर विश्व रिकॉर्ड बना लें उन लोगों पर आप अभी भी देशभक्त के रूप में वोट देंगे धिक्कार अरे ये आडवाणी, जोशी, सुषमा या उमा और बापड़ी सुमित्रा महाजन के ही नही हुए तो तुम्हे क्या चारा डालेंगे
आपको अक्ल है कि नही यह तय करिये, गोबर खाते है या गेहूं , गौ मूत्र पीते है गंगाजल यह तय कीजिये, श्रीराम के उपासक है या रामदेव की सलवार के, जो धूर्त लोकसभा की सीढ़ी चूमकर लोकसभा को अपवित्र कर दें - उससे क्या देशभक्ति का प्रमाणपत्र लेना, देशभर में मुंह में बवासीर वाले भक्तों का सिरमौर जो अपना घर ना बसा सका वो आपके जान माल की क्या रक्षा करेगा क्योकि सब जानते है चौकीदार पक्का चोर है
भाजपा हराओ देश बचाओ
मोदी शाह भगाओ - न्याय पालिका, विधायिका और कार्यपालिका बचाओ

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही