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पतझड़ हंसने का समय है कि नई कोंपलें उगे 1 अप्रैल 2019

"पतझड़ हंसने का समय है कि नई कोंपलें उगे"
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Image may contain: Sandip Naik, smiling, text

"अप्रैल सबसे क्रूरतम माह है" और यह बात जब टी एस इलियट अपनी विश्व प्रसिद्ध कविता "द वेस्टलैंड " की पहली पंक्ति में कहते है तो मुझे वो शाम याद आ जाती है जहां जाकर  मैं अक्सर बैठ जाता हूं लगता है कि जीवन पर कितने लोगों का कर्ज है जो उतारना है , पहाड़ी के सामने से जब सूरज उगता है और यहां पर जलती लाशों को देखता हूं तो संसार का यथार्थ सामने आ जाता है । सब स्पष्ट हो जाता है और लगता है मानो किसी ने इस तरह से बनाया था कि सब यहीं उगे और यही खत्म हो, किसी भी तरह मन नही मानता कि जीवन यहीं से उगेगा - यहीं पर रहेगा -यही यात्राएं होंगी और यहीं पर अंत होगा।

सन्ताप, अवसाद, ताप, कुंठाओं और प्रतिस्पर्धाओं से भरे शरीर की आस कितनी थी, दौड़ ही रहा हूँ सब कुछ पा लेने को और इस सबमे यह भूल गया कि मैं कहाँ - कहाँ छोड़ता रहा, अपने से बात ही नही की, समझना ही नही चाहा कभी अपने को । सुबह उठता तो प्रचंड वेग और जोश से भागता, सबको पीछे छोड़ने की होड़ में कभी थकना सीखा ही नही ।रात में अतृप्त स्वप्नों का संसार लेकर अधखुली आँखों से अपनी झोली में वो सब कुछ पा लेने की हवस थी कि लगता बस यह एक और मुकाम - एक और गला काट स्पर्धा का धावक बन जाऊं, अपने नन्हे पगों से इस वृहत्तर दुनिया को किसी वामनवतार की तरह मात्र तीन डगों से नाप लूँ पर इस सबमे भूलता गया कि हम सिर्फ एक निमित्त मात्र ही है।

अप्रैल इन्ही सब उदास इच्छाओं और नाकामियों का हश्र है जो फिर से सब शुरू करने का सिला भी देता है और पुरजोर ताकत भी। यह माह पतझड़ की शुरुवात करता है ताकि फिर सब नया हो सकें -  हरा और रंगीन ! देखो सेमल के फूल से रुई के फाहे को और बोगनवेलिया के उस झुंड को जो प्रचंड गर्मी के ताप में भी उदात्त भाव से खिला है, बॉटल ब्रश के खिले और गहरे रंग कितने सुहाने हैं - क्या हुआ यदि कुछ पेड़ तप्त धूप में झड़ गए कुछ समय के लिए - इससे जीवन तो नही ठहरता है - लंबे सूने रास्तों पर जो अकेली पहाड़ी पर जाते  हो - टेसू का एक सुर्ख फूल जीवन में अक्षुण्ण ऊर्जा दे जाता है

दुनिया को सबसे ज़्यादा हंसाने वाले और मनुष्य की विद्रूपताओं पर चोट करने वाले चार्ली चैपलिन भी इसी माह जन्में थे , हम सब जानते है कि उनका संघर्ष कितना बड़ा था पर जो तीन बातें उन्होंने कही वो सच में बहुत बड़ी है - यदि आप किसी दिन नही हंसते तो समझो जीवन का वह दिन बेकार गया, इस संसार में कुछ भी स्थाई नही है यहां तक कि हमारे ग़म भी नही और यदि किसी का चरित्र आंकना हो तो तब देखो जब वह मय पिया हो । चार्ली ने जीवन भर हंसाया लोगों को और अपने धीर गंभीर बातों से लोगों को समाज की बुराइयों के बारे में बताया, तानाशाही को लेकर उनका दिया गया प्रेरक उदबोधन आज भी सामयिक है । यह सिर्फ चार्ली की बात नही - उन सब लोगों की बात है जो अप्रैल जैसे क्रूर माह में जन्में है - शायद इसी बात को इलियट अपनी कविता में इंगित करते है जो अंत में जाकर भारतीय दर्शन के दत्ता, दमयता , दयाधम जैसे तीन शब्दों के साथ ओम शांति पर समाप्त होती है। इसलिए खूब हंसों और सब कुछ नश्वर है यह मानकर चलो - पतझड़ होगा ही नही तो नई कोंपलें नही फूटेंगी - यह भी नियम है

ये तरबूज, खरबूज, आम,  शहतूत, रसीले रँग बिरंगी शरबत, कच्चे कैरी के पने, कैरी पुदीने की हरी कच्च चटनी, कच्ची मीठी इमली, बर्फ के  गोले, लस्सी, मटका कुल्फ़ी और खूब ठंडी आईसक्रीम का मौसम है, बाजार सज रहें है , श्रीखंड खाने की चैत्र प्रतिपदा आ रही है गौरी पूजा के बाद चने की दाल को भीगोकर जो दाल बनाई जाती है पूजा में उसकी पदचाप ने मन पागल कर दिया है, सिर्फ चावल और खट्टी मीठी दाल या दही बड़े खाने को ही मन करें बजाय भारी गरिष्ठ भोजन के तो समझो आ गए दिन गर्मी के

शाम को घास और बगीचों की ओर रुख करें और सूनी पटरियों के किनारों से डूबते सूरज को विदाई देने को जा बैठे,  छत पर पड़े हुए शीतलता को ओढ़ने की रात और भोर से आँख मलते सूरज की चुंधियाती रश्मि किरणों को हटाकर छाँव में भागने के दिन आ गए है, यह सब इसलिये कि सनद रहें गर्मियों में जितना क्षोभ, अवसाद, संताप और आलस है उतना ही मीठा, खट्टा और जीवन को वरदान देने वाले प्रलोभन भी है कि इन्हीं के सहारे गुजर जाएगा यह सब ।




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