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Post of 9 Aug 15


सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और सरकारें

अच्छा जरा सुनिए, लोकतंत्र  में डिग्री का महत्व सिर्फ कच्चे पक्के, नासमझ और गंवार समझे जाने वाले पंचायत के समय होने वाले चुनावों में ही होता है क्या? अबोध महिलाओं को आपने 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा 50 प्रतिशत आरक्षण तो दे दिया पर दो बच्चे से ज्यादा वाले चुनाव नहीं लड़ेंगे या आठवी पास के ऊपर ही पंचायत चुनाव लड़ सकते है जैसे क़ानून लाकर आपकी मंशा जाहिर होती है कि आप वास्तव में क्या चाहते है. 

देश के भूमि अधिग्रहण से लेकर कार्बन डेटिंग या परमाणु ऊर्जा या बलात्कार की सजा, या अपने देश की जमीन को दूसरे देश को सौंपना, या कैदियों की जान का निर्णय करना, या इत्ते सारे लोगों के लिए लम्बी योजना बनाना और इत्ते सारे रुपयों का हिसाब रखने के लिए कोई शिक्षा या समझ की जरुरत नहीं होती. राजस्थान में आप पंचायत के चुनाव में एक योग्यता निर्धारित करते है, और अपने समय में सब भूलकर अपढ़, कुपढ और मूर्ख लोगों को टिकिट दे देते है और फिर उनसे संसद में बिलकुल उजबकों की तरह से बहस करवाते है और उन्हें तमाम तरह की उच्च स्तरीय समितियों में रखकर अपनी मन मर्जी के निर्णय लिवा लेते है. 

ध्यान रहे यह आरोप पुरे सत्तर साल की राजनीती पर है सिर्फ मोदी पर नहीं, इसमें स्मृति से लेकर राहुल, सोनिया, ढपोर शंखी साधू संत और सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मन मोहन तक शामिल है. 

अब शायद समय है जब देश में जब तथाकथित साक्षरता का स्तर भयानक बढ़ा है, इंजिनियर से लेकर एम ए, पी एच डी का अम्बार है और सब तरह के देशी विदेशी डिग्री लिए लोग बाजार में निकम्मे - नालायक प्रशासकों और नेताओं के कारण सडकों पर नौकरी की भीख मांग रहे है, उस देश में सोनिया, राहुल, स्मृति या मोदी या तोमर जैसे लोग सचमुच देश की एक पुरी पीढी के साथ धोखा है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक भयानक परिदृश्य तैयार करने की गहरी साजिश.

दुर्भाग्य से इस समय हुक्मरानों में इतनी भी नैतिकता नहीं है कि वे अपनी फर्जी ही सही, डिग्री का सार्वजनिक प्रदर्शन करें या आगे आकर खुद इस बात और विवाद को शांत करें. एक तरफ आप शिक्षा और सार्वजनिक रूप से शिक्षा के सार्वभौमिकरण की बात करते है, जनसंख्या से लेकर तमाम तरह के प्रपत्रों में शिक्षा का चालना लगाते है और इसी आधार पर छांट बीन करते है और अपनी बारी आने पर निहायत ही कायराना ढंग से छुप जाते है और फिर दुनिया भर में नैतिकता, ईमानदारी और पारदर्शिता का ढोल पीटते है. यह सिर्फ राष्ट्रीय शर्म ही नहीं, बल्कि इस छोटे से आधार पर किसी को भी किसी व्यवस्था में बने रहने का अधिकार नहीं है. 

इस पाप की शुरुवात कांग्रेस ने की, समाजवादी, जदयू, बसपा, वामपंथी, दक्षिण की सभी पार्टियां, और अब भाजपा यानी कोई भी दूध का धुला नहीं है. जयललिता जैसों ने तो शिक्षा का सत्यानाश ही कर दिया जब उन्होने अपने कार्यकाल में खुद को ही विश्व विद्यालयों से डाक्टरेट की डिग्री दिलवा दी, इससे बड़ी शर्म क्या होगी? इस समय हम सब नरेंद्र मोदी की तरफ आस भरी दृष्टि से देख रहे है कि वे ना मात्र आगे आये बल्कि इस समय देश की मांग को समझाते हुए अपनी डिग्री सार्वजनिक करें, लोक जीवन में एक आदर्श स्थापित करें, और इस धुंध को छांटे. यह उम्मीद कांग्रेस से नहीं कर सकते क्योकि वहाँ तो पुरे कूएं में भांग पडी है और बाकी दलों की बात छोड़ दें. 

एक बार मोदी जी ईमानदारी से अपने पुरे मंत्री मंडल की शिक्षा को सार्वजनिक कर दें और फिर देखे आपको जो बहुमत मिला है वह कैसे सम्मान में बदलता है और आपकी वाह वाही होती है.

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