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Khari Khari, Farukh Sheikh and Marriage age of Girls, Sandip Ki Rasoi - Posts of 14 to 16 Dec 2021

दिल्ली में अकबर रोड का नाम विपिन रावत रोड रखने का प्रस्ताव है, सड़क पर तो गन्दगी आदि बहुत होता है

क्यों ना प्रस्तावित और नए बनने जा रहे संसद भवन का नाम विपिन रावत भवन रखा जाये ताकि लोकतंत्र को शक्तिशाली रूप से बचाने वाले जनरल का नाम अमर रहें
सेना नायकों को सम्मान देने वाला हमारा देश दुनिया का पहला रोल मॉडल होगा और सरकार का नाम भी स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा, ज्यादा युवा सेना की ओर आकर्षित होंगे और सैनिकों के लिए सम्मान भी बढ़ेगा
मैं तो सोच रहा शहरों के नाम भी इसी तरह से बदले जाए , पूरे 748 जिलों , 6,38,365 गांवों, टोलों, कस्बों, सड़कों, मुहल्लों और चौकों के नाम बदल दिए जाएं, 2024 तक हो जाएगा यह काम आसानी से
जस्ट सोचिंग
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चश्मे बद्दूर हो या उमराव जान, कथा, किसी से ना कहना, साथ - साथ, नूरी, गमन, लिसन अमाया, गरम हवा, बाजार हो या कोई और फिल्म - फारुख शेख जैसा आदमी जो सिर्फ कलाकार ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन व्यक्ति था - हिंदुस्तानी फिल्म इतिहास में जो काम जबरदस्त फारूख ने किया है वह अद्भुत है
फ़िल्म बाजार को याद करता हूं तो मुझे दुबला - पतला सा फारुख याद आता है, उमराव जान में कोई नवाब याद आता है, चश्मे बद्दूर में एक बेरोजगार सा लड़का जो दीप्ति नवल के पीछे लगा है राकेश बेदी और रवि वासवानी के साथ ; फारुख शेख की भाषा, उसके कहने का अंदाज, उसकी डायलॉग डिलीवरी और उसकी पूरी बॉडी लैंग्वेज - मतलब लगता है कि बंदा सात समंदर पार से 84 लाख योनियों और असंख्य पहाड़ों को कूद फांदकर सिर्फ अभिनय करने ही यहां इस धरा पर आया था
उमराव जान में जब वह अपनी बीवी के साथ रेखा का मुजरा सुनता है तो उसके चेहरे के जो भाव है - वे आपको कहीं दूर ले जाकर छोड़ देते हैं और लगता है कि पता नहीं इस कलाकार के चेहरे - मोहरे और आंखों में कितना कुछ हर बार शेष रह जाता है - जो वह अभिनय, संवाद के साथ अभिव्यक्त करना चाहता है और किसी भी काल्पनिक कहानी को इतना जीवंत कर देता है जैसे अभी - अभी सच में वह कोई उस फिल्म का किरदार हो - जो जीवन जी गया, पति - पत्नी के रिश्ते में जमीर और खुद्दारी की बात साथ - साथ में दीप्ति के साथ क्या खूब उभारी - "इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए", गमन हो या किसी से ना कहना में क्या किरदार था बन्दे का - सफेद रंग के धवल कुर्ते पाजामे में बन्दा इतना नफीस लगता था कि मानो जाहिद हो , कोई वाइज़ हो खुदा का और नम्रता इतनी कि शैतान भी ख़ौफ़ खाये बन्दे से
फारुख शेख, स्मिता पाटिल, दीप्ति नवल, अमोल पालेकर, उत्पल दत्त, सतीश शाह, टीकू तलसानिया, सुप्रिया और रत्ना पाठक, रवि वासवानी और शबाना के साथ ओमपुरी जैसे लोग जब से इस फिल्मी दुनिया से चले गए हैं - तब से ना फिल्में देखने का मन करता है और ना ही कोई कहानी पसंद आती है ; नसीरुद्दीन शाह जैसे मंजे हुए लोग अभी भी हैं, परंतु अब जिस तरह के हो गए हैं या नाना पाटेकर भी, अब फिल्मों के बारे में कुछ कहना मुश्किल है
बहरहाल, फारुख शेख का होना एक तसल्ली थी, एक आस्था थी - भरोसा और विश्वास था कि यह सब उतना कठिन और दुरूह नही है, इस संसार की हर "मिस चमको" के लिए एक आदर्शवादी हीरो ही नहीं, धड़कते दिल ही नही बल्कि जीवन का पर्याय था - जो बहुत सहज रूप से हँसता बोलता है, संजीदा रहता है और हर क्षण जीता है एकदम साफगोई से
ऐसे लोगों के काम को देखना भी सम्भवतः एक स्वर्गिक सुख ही है जो इस विलुप्त होती स्मृतियों में किसी रील से गुज़र जाते है और रोते - हँसते हुए बार - बार आँसू पोछते है, अपने में ही मुस्कुराते है, गुनगुनाते है और गा उठते है
"ज़िंदगी जब भी तेरी बज़्म में लाती हैं हमें
ये जमीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें"
फारूख - आज ना जाने क्यों याद आ रहा सुबह से, अभी लिखा तो लग रहा जैसे रूह को सुकून आ गया और वो यह लिखें जाने तक मेरे आसपास मंडरा रहा हो जैसे, ना जाने कितने दिलों की हसरत और धड़कन था वो, पर बन्दा था गज़ब का ; सई परांजपे ने एक मराठी कादम्बरी के दीवाली विशेषांक में कहा था कि "कथा" से मुझे यश मिला और उसमें दिलफेंक मुम्बइया हीरो का चरित्र निभाने वाला मुंबईया चाल का असली जीवन परसोनिफाई करने वाला फारुख ना होता तो मेरा निर्देशक होना ही नही, एक बेहतरीन मनुष्य होना भी सम्भव नही था
फारुख मरते नही वे इसी बज़्म में गाते रहते है -
फिर छिड़ी बात फूलों की
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◆धर्म का भार ढोते ढोते जब सत्य के पांव लड़खड़ाने लगे तो सत्य मयखाने में जा बैठा, क्योंकि सबसे बड़े अपराध पूरे होशो हवास में होते हैं
◆ न्याय का बोझ जब कानून की किताब नहीं उठा पाई तो वो खुद जेल की बैरक में कैद हो गया - सदी के सबसे बेकसूर लोग सड़ते हैं जेलों में
◆ जब सम्मान और नाम की खातिर प्रेमिकाओं ने दिल छोटे कर लिए तो प्रेम ने रास्ता बदल लिया, सबसे मासूम दिल होता है उन स्त्रियों का जिन्हें समाज चरित्रहीन कहता है
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जिस देश में प्रधानमंत्री को भोग विलास, दिखावे और ध्वनि प्रदूषण करने की आदत हो, अपनी हर विजिट के बाद शहरों, नदियों के घाटों , मंदिरों और पहाड़ों पर कूड़ा - कचरा फैलाने की लाइलाज बीमारी हो - उस देश में किसी बारात को क्या कोसना, दूल्हा तो बेचारा जीवन भर में एक बार मूर्ख बनता - बनाता है जनता को , पर ये नौटँकीबाज रोज दिन में दस बार कपड़े बदलकर हमारी मेहनत के रुपयों के बल पर भोंगो और मीडिया से पूरे देश - विदेश में भाषण पेलता और झिलवाता हो - उस देश में कभी भी ना ध्वनि, ना जल, ना सामाजिक और ना पर्यावरणीय प्रदूषण सुधर सकता है और कूड़े करकट का जिम्मेदार भी यही है
[ बारातों ने परेशान कर रखा है आजकल, अभी सुबह से एक बारात इतने डीजे लेकर भौंक रही है कि लगता है गोली मार दूं "अग्नि साक्षी" के नाना पाटेकर की तरह कि 'चलो बन्द करो बहुत हो गया' ]
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|| म्हारी उमर बीती जाए रे ||
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लड़के - लड़की के विवाह की कानूनी उम्र सरकार समान यानी 21- 21 करने जा रही है, निश्चित ही यह स्वागत योग्य फ़ैसला है
कुपोषण, एनीमिया, सामाजिक कुप्रथाओं, मानसिक तनाव, ख़ौफ़ और अन्य मुद्दों से जूझ रही लड़कियों के स्वास्थ्य एवं विकास के लिये यह अच्छा निर्णय है पर 75 वर्षों बाद बाल विवाह का नासूर हम खत्म नही कर पा रहें है - खासकरके कुछ समुदायों में [ जैसे सहरिया, गौंड, बेगा, मवासी, भील, आदिवासियों के साथ कुछ घुमन्तू जनजातियों या दलित वर्ग के साथ - साथ दूरस्थ ग्रामीण इलाकों में सवर्ण समाजों या मुस्लिम समाज में भी लड़कियों की शादी जल्दी कर देते है कि माँ बाप की इज्जत बची रहें और "लड़कियाँ शादी के पहले अपना मुँह ना काला कर लें"] कम उम्र में शादी को अभी भी सामाजिक मान्यता है और सरकार के महिला बाल विकास से लेकर जिला प्रशासन को हर मौसम में चौतरफ़ा नज़र रखकर परेशान होना पड़ता है
जब 18 की उम्र को ही हम समाज से मनवा नही पा रहें तो 21 - 21 की जोड़ को कैसे मैनेज कर पायेंगे, क्या लड़के - लड़की की औसत आयु, मेडिकल और अन्य मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इस बात की तस्दीक कर ली गई है - यह भी विचारणीय है
उम्र बढ़ाने के साथ ब्लड ग्रुप मैचिंग, पंजीकरण, दो सन्तानों में न्यूनतम तीन वर्ष का अंतर, दो से अधिक सन्तान नही और सुरक्षित प्रसव - देखभाल के लिए कड़े कानून जब तक नही बनेंगे - इस तरह के फ़ैसलों का व्यापक असर दिखाई नही देगा और क्या सेक्स की कंसेंट उम्र 18 ही रहेगी - यदि हाँ तो फिर इससे क्लैश ही बढ़ेगा और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध बढ़ेंगे यह मानकर चलिये
हर तरह के कानून के लिए समाज की स्वीकृति आवश्यक है बजाय मोटी किताबों में एक और कानून बनाकर पुलिस, प्रशासन या न्यायपालिका को हैरास करने के लिए पटक दिया जाये, होगा कुछ नही फर्जी दस्तावेजों की बाढ़ आएगी, 498 जैसा दुरुपयोग होगा, बलात्कार बढ़ेंगे और फर्जी मुकदमों की भी सम्भावना है
21 - 21 का फैसला स्वागत योग्य है
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|| मालवा का मराठी चट्टू ||

अभी खण्डवा गया था तो वहाँ सीमा जी ने निमाड़ की एकदम तीखी - ताज़ी लाल मिर्च का खट्टा वाला अचार खिलाया, अपुन को चैन नही पड़ रहा था, फिर बाहर भी यानी मुम्बई और अमेरिका में भी पुत्तर मांग करने लगे कि हमकूँ भी खाना है, अब फटाफट बनवाकर भिजवाता हूँ दनादन, दनादन, दनादन
लौट आया था निमाड़ से, फिर याद आया कि अफ़सोस क़ायकूँ करने का, अपने सखा Dinesh Patel और Jeet Jamra जैसे दोस्त है तो सही पश्चिम निमाड़ में, सो दोनो से कल ही चिरौरी की और यह देखिये नतीजा, आज जीत की भेजी तीखी लाल मिर्च मिल गई है, दिनेश की भेजी दो प्रकार की भी दोपहर तक मिलने की उम्मीद है कुरियर से, अब तीखा बोलूँगा तो दोष इन दोनों को देना - शुक्रिया और बहुत पियार दोनो कूँ - जीवन को और लाल तथा तीखा बनाने के वास्ते
बस अब लालम लाल है कमरा और अचार के साथ कुछ कुछ और बनेगा
कसम से और तीखा बोलने का बहाना मिल गया, जिसको बुरा लगे अचार और लाल व्यंजन खाने आ जाना सीधे घर पर

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