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Posts of II Week Feb 2020

Posts of Feb II week 


Subah Sawere 12 Feb 2020
याज्ञवल्क्य लंबे समय जिंदा नही रहते
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नही लिखना चाहता था, परीक्षा के बीच अपना ध्यान नही भटकाना चाहता था, पर कठुआ से लेकर जेएनयू, जामिया और अब गार्गी कॉलेज में जो हुआ उससे विचलित हूँ
जिस कानून की पढ़ाई कर भारतीय न्याय व्यवस्था को सीखने समझने की कोशिश कर रहा हूँ वही यदि बेबस, लाचार और वृहन्नला हो जाये तो लानत है ऐसी पढ़ाई और तर्कशीलता पर, अफसोस यह है कि सब चुप है - दो लोगों की लगाई आग में 138 करोड़ लोग, मातृशक्ति भस्म हो रही है - कमाल है और हम सब चुप है
राजेन्द्र यादव ने "हंस" के औरत उत्तर कथा विशेषांक के सम्पादकीय में लिखा था कि हर परिवर्तन के झंडे का डंडा स्त्री की योनि में ही गाड़ा जाता है, उस समय वे सिख दंगों, बाबरी मस्जिद, भिवंडी और अन्य दंगों के बरक्स महिलाओं को दंगों में घसीटकर बलात्कार करने और प्रताड़ित करने की बात कर रहे थे
आज कठुआ से लेकर जेएनयू, जामिया, शाहीन बाग और गार्गी कॉलेज में हुए सारे अनाचार राज्य प्रायोजित है और ये सब सोची समझी नीति के तहत है
एक चुनाव जीतने के लिए संविधानिक पदों पर बैठे लोग इस तरह की गुंडागर्दी पर उतर आएंगे कि न्याय, प्रशासन और पुलिस व्यवस्था को नपुंसक बनाकर हद से बाहर हो जायेंगे , असल में ये लिंग दिखाकर हस्त मैथुन करने वाले उसी संस्कृति से आते है जो प्यार के नाम पर वर्जनाएं थोपते है - वेलेंटाइन दिवस पर डंडे लेकर स्वयं न्यायाधीश बनते है और इस तरह से अपनी कुंठाये दबाकर नपुंसक मानसिकता का भौंडा प्रदर्शन करते है
यह इस देश का दुर्भाग्य भी है कि 65 वर्षों की आजादी के बाद प्रचंड बहुमत से आई संस्कृति रक्षक सरकार ने जो हर मोर्चे पर परिणाम दिए है वे भयावह है पर सबसे खतरनाक असर महिलाओं पर पड़ा है
इस सबमें जस्टिस लोया की मौत, गोधरा के आरोपियों को समाज सेवा के लिए छोड़ना, हीरेन्द्र पंड्या की मौत को दबा जाना, गुजरात फाइल्स का गायब होना, माया कोडवानी, प्रज्ञा ठाकुर का छूटना भोपाल से सांसद बनना और फिर अमर्यादित भाषणों की श्रृंखला और तमाम बाबाओं से लेकर चिन्मयानंद तक का सफर और करतूतें, 370 का विलोप और कश्मीर में तानाशाही, तीन तलाक, राम मंदिर का फ़ैसला, उप्र में लगातार महिलाओं के खिलाफ हिंसा बलात्कार , देश भर में बच्चों का कुपोषण से मरना, आर्थिक कंगाली और बेरोजगार युवाओं की जमात जो अपना भविष्य भूलकर संगठित हो रहें है धरना रैली और गुंडागर्दी के लिए - एक सीरीज के दृश्य या एपिसोड्स है मानो
ठीक इसके विपरीत स्मृति ईरानी से लेकर बाकी महिला सांसदों की चुप्पी और मार्ग दर्शक मंडल में बैठे असली जनसंघी जो ख़ौफ़ में काँपते है - का मौन भी दुखद है
यह समय यह भी दिखाता है कि व्यवस्था ने समाज को हिन्दू - मुस्लिम किया पर लोग संगठित हुए, मोदी शाह के कारण ही आज देश की आबादी बगैर हिन्दू - मुस्लिम किये सड़कों पर है, खासकरके मुस्लिमों के लिए यह एक पुनर्जागरण काल है जिसमे वे ना सिर्फ देश के नाम पर अपनी अस्मिता टटोल रहें है बल्कि महिलाएं मुल्लाओं और अपढ़ मौलवियों के जाल से निकलकर , अपनी बंदिशों एवं धर्म भीरू हिंसक पतियों और हिजाब से निकलकर सामने आई है - इसके लिए मैं राजा राम मोहन राय के आंदोलन को याद करता हूँ - मुझे यह कहने में कोई गुरेज नही कि इतिहास और समाज को मोदी शाह का उपकार मानना चाहिए कि इनकी इस सोच और कूटनीति के कारण आज देश की महिलाओं ने अपने हक़ों और अस्मिता को पहचाना है
यकीन करिये ये लिंग हिलाते - हिलवाते युवा - अधेड़ों नपुंसकों और नामर्दों को इस देश की गार्गियाँ ही बाहर निकालकर फेंकेंगी, याज्ञवल्क्य बहुत साल जिंदा नही रहते , एक दिन चुनाव में लोग ईवीएम मशीनें फेंकेंगे , एक दिन लोग खड़े होकर राष्ट्रपति भवन में सवाल पूछेंगे , एक दिन सुप्रीम कोर्ट को जवाब देना होगा कि जब लोकतंत्र की हत्या हो रही थी तो न्यायाधीशगण क्या कर रहे थे, वे रिटायर्ड न्यायाधीश पेंशन और भत्ते पाकर ही जिंदा थे जो सुप्रीम कोर्ट से बाहर आकर बगावत कर बैठे थे, वकीलों को उनकी औलादें पूछेंगी कि जब न्याय नही हो रहा था तो आपकी डिग्री किसके घर दूध दे रही थी, एक दिन सुधीर रोहित रजत अर्नब को जनता सड़क पर दौड़ा दौड़ाकर मार डालेगी और सारे पत्रकारिता संस्थानों पर कब्जा कर वहां आग लगा दी जाएगी
इस समय में चुप रहना घातक ही नही बल्कि अपने घर आतताइयों को आमन्त्रित करना है और हमारे हिंदी के साहित्यकार - हवाई यात्राओं के टिकिट्स की बाट जोह रहे है - आपको लगता है कि जनता इन्हें बख़्श देगी
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सबसे ज्यादा बेइज्जती कांग्रेस झेल रही है
आज़ाद हिंदुस्तान का यह काला पृष्ठ है व कांग्रेस को सोचना चाहिए - विपश्यना करें एक बार नही - बार - बार ..
पर क्यों कैसे जीती अरविंद ने दिल्ली आगे पढ़िए
दिल्ली का शिल्पकार राहुल गांधी
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यह कांग्रेस की अप्रत्यक्ष जीत है जिसे राहुल और प्रियंका ने बड़े आरजू से और मिन्नतों से सँवारकर केजरीवाल को सौंपी है
पहली बार नेहरू के बाद शिक्षा और सुशासन चुनाव में मुद्दा बना और लोगों ने स्वीकारा और वोट किया , यदि कांग्रेस प्रचार करती तो यह कांग्रेस बनाम भाजपा हो जाता और भाजपा जीत जाती जो आज मुंह दिखाने लायक नही रही हैं
मोदी ने राहुल को टारगेट करके चुनाव को मोड़ने की कोशिश की, अमित शाह ने शाहीनबाग को मुद्दा बनाया और करंट फैलाने की नाकाम कोशिश की परन्तु ना राहुल ने और ना कांग्रेस से हड़बड़ी दिखाई मुश्किल से एक दो जन सभाएं की ताकि केजरीवाल को साफ़ मैदान मिल सकें
वरना इतनी बड़ी दिल्ली में एक सीट ना आना असम्भव है क्या तब जबकि अभी कांग्रेस ने महाराष्ट्र जैसा राज्य जीता, झारखंड, मप्र, राजस्थान, छग भी जीता था तो दिल्ली कौन बड़ी बात थी
यह जीत राहुल की रणनीति का परिणाम है जो दम ठोंककर कहता है कि डंडे पड़ेंगे और प्रधान मंत्री इस बात का रोना धोना करके वोट लेने के लिए पुनः ध्रुवीकरण करते है पर जनता सच में डंडे लेकर खड़ी थी यह समझ नही आया तो किसी को कुछ नही कहना है, मानसिक परिपक्वता आवश्यक है चुनाव कांग्रेस और केजरीवाल समझने के लिए - भक्ति के लिए अक्ल की जरूरत नही है - यह 2014 से सिद्ध हो चुका है
कांग्रेस को पुनः सोच विचार करना है, विपश्यना से ही आत्म बल मिलता है यह भी सच है पर नाटक नौटँकी , अभद्रता और गुंडागर्दी के करंट से सत्ता नही मिलती दिल्ली पढ़े लिखें लोगों का क्षेत्र है अनपढ़ गंवार और फर्जी डिग्री वालों का गढ़ नही
ध्रुवीकरण हर हाल में नाकाम होगा यही हमारी ताकत है, कांग्रेस जो इस जीत का पूरा श्रेय भी जाता है इसमें कोई शक नही और अरविंद यह कंफेशन करेंगे यह लिखकर रख लीजिए
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जोकर के लिए 2020 का बेस्ट एक्टर का ऑस्कर जीतने वाले वॉकिन फीनिक्स कहते हैं...
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“मैं बेहद बकवास आदमी रहा हूं। मैं स्वार्थी और क्रूर भी रहा। मेरे साथ काम करना बेहद मुश्किल रहा है। मैं उन सब लोगों का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने मुझे इतनी गलतियों के बावजूद हर बार दूसरा मौका दिया। मुझे लगता है कि यही वह समय था जब हम अपने सर्वश्रेष्ठ पर रहे, जब हम एक दूसरे को सपोर्ट करते हैं, जब हम एक दूसरे की मदद करते हैं, जब एक दूसरे को गाइड करते हैं। न कि तब जब हम अपनी पुरानी गलतियों के लिए एक-दूसरे को नकारते हैं। यही मानवता का सर्वश्रेष्ठ है।”
[ तटस्थ ]
* शायद हम सब कही ना कही इससे समानुभूति रखते है और हम भी ठीक ऐसे ही है
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पांच छह मित्रों को अच्छी और महंगी पुस्तकें गिफ्ट की थी, बड़े स्थापित लेखकों की थी या यूँ कहूँ कि हिंदी के क्लासिक्स की पर उन्होंने पढ़ी ही नही और बल्कि बेशर्मी से यह कहा कि " यार तुमने जो दी थी, वो पड़ी है पढ़ने का टाइम नही और इतने भारी भारी लोगों को झेलना अब मुश्किल है - इसके बदले नगद दे देते तो कुछ काम आ जाते वो रुपये - अबकी बार घर आओ तो उठा ले जाना भले रुपया मत देना , पर वो किताबे ले जाओ किसी काम की नही "
तय किया है कि अब किताबें गिफ्ट नही करूँगा किसी को भी, कुछ और मित्रों को उनकी रुचि के अनुसार विषयों से सम्बंधित 8 - 10 किताबें गिफ्ट की थी पर अगलों ने "प्राप्त हुई" का संदेश तक नही दिया
इस निराशा जनक व्यवहार से दुखी हूं और अब आपको भी यही कहूँगा कि किसी की सलाह में आकर किताबें गिफ्ट करने का मूर्खतापूर्ण निर्णय ना लें
नगद दो ₹ - 11, 21, 51, 101, 201, 251 या बहुत ही कोई करीबी हुआ तो 501 और मुक्ति पाईये
एक बार ईमानदारी से खुद भी अपने भीतर झांककर देखना कि किसी के गिफ्ट या पकड़ाई हुई किताबों या खरीदी हुई भी कितनी पढ़ पाएं है - कमेंट करने या सुझाव देने के पहले ताकि बाद में अंतरात्मा को झूठे कंफेशन्स या सबमिशन से तकलीफ ना हो
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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ट्रस्ट गठन में कमबख्त मराठी कोई नही है जबकि संघ का पूरा बौद्धिक असला, गोली बारूद का सप्लाय कढ़ी और पूरणपोली के रास्ते से ही जाता है
सोच रहा हूँ अप्लाई कर दूँ पूज्य मोई जी की अदालत में - ऐसे थोड़े ही होता है, मराठियों के घर का खाना खा लिया और मन्दिर निर्माण में हमकू रखा ईच नई
और तो और अम्बानी अडानी भी नही, मेरी चिंता ये है कि अब पईसा कां से आएगा,1992 में इकठ्ठा हुआ अरबों रुपया तो खत्म हो ग्या होगा नी भिया
अखिल भारतीय मराठी समाज क्या कर रियाँ है - मराठियों का अपमान नही सहेगा हिंदुस्तान
मालूम नी हेगा - बैसे कोई गुज्जु भी हेगा कि नी ?
🤣🤣🤣
* निजी विचार सहमत होना आवश्यक नही
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अपनी रचना या कुछ भी लिखें के साथ खुद का फोटू चैंपना कितना उचित है - साथ ही गाना, वीडियो और तमाम प्रपंच आत्म मुग्धता के चस्पा करना, कोई लेखक हुआ तो क़िताब के भी फोटू दिन में पचास बार सदियों से लेकर पीढ़ियों तक लगाता रहेगा - अरे नई लिखो भाई - बोर हो गए वही देख देखकर , नई खरीदकर जिले में बंटवा देंगे पर पुरानी कब तक झिलवाओगे
जानकारी, सूचना या किसी से मिलें जुले तो ठीक पर हर कविता, नोट, कहानी, ग़ज़ल या दो लाइनों में भी अपने को बेचने की जद्दोजहद उपर से वीडियो अलग
मोदी हर जगह है हर घर में नही हर शख्स में - कैमरे को ताकता और खुद को उघाड़ता
अरे भाई रचना को आय कैचिंग बनाने के लिए अपना चेहरा क्यों दिन भर थोप रहें हो, रचना में दम होगा तो पढ़ी समझी जाएगी और ऊपर से अपेक्षा कि " देखें, शेयर करें" की जबरन मनुहार, इनबॉक्स भरा पड़ा रहता है
* निजी विचार - सहमत होना आवश्यक नही
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