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Khari Khari, Drisht Kavi and other Posts related to MP Election Results from 10 to 17 Dec 2023

"सुनिये, एक लिंक और सन्देश आपको मैसेंजर और वाट्सअप पर भेजा है" - उधर लाईवा था
"क्या है इसमें" - मैंने पूछा
"मेरी किताब की लिंक है, अमेजॉन वाली, आप क़िताब मंगवाये, पढ़े और समीक्षा करें " - लाईवा चहक रहा था
"जा बै, रुपये मेहनत से कमाता हूँ, तेरी घटिया किताब खरीदने के लिए ये रूपया बर्बाद नही करूँगा, निकल, और अब मैसेज भेजे तो ब्लॉक कर दूँगा और ट्रोल करूँगा वो अलग, समझा" जवाब देकर फोन काट दिया
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कैलाश विजयवर्गीय का आडवाणी हो जाना
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बंगाल चुनाव में हार का ठीकरा कैलाश विजयवर्गीय जी पर फूटा था, चुनाव में निपटाने के हिसाब से उन्हें उतारा था भाजपा ने, पर जीत गए, पर अब मुख्य मंत्री बनने का सपना आडवाणी जी की तरह सपना ही रह गया, इंदौर में उन्हें कही से भी खड़ा करो वे हार नही सकते
कैलाश जी की आक्रामक शैली और इंदौर के पुराने कर्म - जब महापौर थे, हमेंशा आड़े आ जाते है - फिर वो पेंशन कांड हो या जमीन के या सिंहस्थ 2004 के कर्म , कैलाश जी करीबी पारिवारिक मित्र है, मेरी सगी बुआ का मकान नंदा नगर की 9 गली में जीवन बीत गया , मेरे फूफा और कैलाश जी के पिता जी ने इंदौर की मीलों में प्राण फूँककर अपना जीवन लगा दिया, स्व गुलजारीलाल नंदा ने जब श्रमिको को क्वार्टर दिए तो बुआ और इनका परिवार साथ साथ रहें, कालांतर में इसे नंदा नगर के नाम से जाना जाने लगा ; कैलाश जी की माताजी यानी जगत की काकी जी बहुत ही सज्जन और स्नेहमयी महिला रही, बचपन से कैलाश जी को देखा है एक सफल भजन गायक, फिर छात्र राजनीति, फिर नगरनिगम और अंत मे प्रदेश की सक्रिय राजनीति में - भले और सज्जन व्यक्ति है और मील क्षेत्र का कोई घर ऐसा ना होगा जिन्हें वे जानते ना हो या हर सुख - दुख में वे उपस्थित न रहें हो, बुआ की मृत्यु के बाद मकान कैलाश जी ने खरीद लिए और अब उनकी कोने वाली काकीजी की दुकान तक चार - पाँच मकान उन्ही के है, मेरा भी विचार था कि कैलाश जी एक बार तो प्रधान बन जाते प्रदेश के, इंदौर के विकास में उनका योगदान अतुलनीय है, हालांकि ताई खेमे के धुर विरोधी रहें है वे और ताई ने भी उन्हें कभी आगे बढ़ने नही दिया लोकसभा के अध्यक्ष रहते
नितांत निजी विचार है पर दुख यह है कि इंदौर से मुख्य मंत्री का पद फिर फिसल गया एक बार और उज्जैन ने बाजी मार ली , इससे तो हमारे जिले का बागली ठीक था दो बार कैलाश जोशी जी को मुख्य मंत्री बनाया प्रदेश का
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सुप्रीम कोर्ट
कितने क्यूट, न्यायप्रिय और सज्जन हो
आज और पिछले फ़ैसले (Same Sex Marriage) से लगा कि कितने निरपेक्ष और शरीफ़ हो, सही है सबको ज़िंदा रहना है और रिटायर्डमेन्ट के बाद बने रहना है, मतलब अस्थाई प्रावधान था तो 1947 से अभी तक के सभी सीजेआई ज्ञानी नही थे जो सँविधान और उन अनुच्छेदों को विश्लेषित नही कर पाएं जिसमें 370 के "अस्थाई प्रावधान" का जिक्र था - लव यू रहेगा हमेशा - आप न्यायप्रिय लोगों पर
सवाल फैसलों के नही, जो precedence आप इतिहास में बना रहे है ना वो आपके परिवार के आने वाले जजेस को ही तकलीफ़ देंगे , क्योंकि 350 परिवारों में उच्च स्तर की न्याय पालिका निहित है और आपको लगता है सत्ता उन्हें बख्शती जाएगी हमेंशा - हम जैसे लोगों को तो न्याय मिलेगा नही, कानून के बूटों तले रौंदे जा ही रहें है 1947 से, जिस गरिमा और नागरिकता को सँविधान में हमे हक है वह जीते जी तो मिलेगी नही - आपका क्या होगा जनाबे आली
एक बात और, कल बहुमत ऐसे लोगों का हो जाये - जो नितांत असंवैधानिक हो तो क्या उनके हर निर्णय भी जायज ठहराकर अपना कानूनी ठप्पा लगा दोगे
जय जय सँविधान
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घोसी मल जी पैशे से प्राध्यापक है और एक निजी महाविद्यालय में पिछले 38 वर्षों से माँ भारती की सेवा करके हिंदी पढ़ा रहें हैं, आपकी दूरदर्शिता, वाणी संयम, बुद्धि, साहित्यिक समझ, दृष्टि और खुलापन सठिया जाने के बाद भी काबिले तारीफ़ है, वे हिंदी के जीते जागते शब्द कोष [ कोश ] भी है , हर माह बिना नागा देशभर से किसी न किसी को अपने कस्बे में बुलाकर आप साहित्य की जो सेवा करते है उससे आपका नाम स्थानीय अखबारों में तो चमक ही जाता है, साढ़े ग्यारह दर्जन किताबों के रचयिता है आप और हर हफ़्ते एक किताब निकल रही है
साहित्य में ऐसा बिरला ही होता है कि कोई सतत 38 वर्षों तक लिखते - पढ़ते रहें और विहंगम दृष्टि से साहित्य का अद्यतन अध्ययन, शोध और मूल्यांकन भी करते रहें, पर घोसी मल जी को देखकर लगता नही कि वे अब चूक गए है वे आज भी ज़िंदा है अपवाद है तमाम कुचक्रों और गाली गलौज के बाद भी भद्र समाज में विवादित है
इधर उन्होंने पूर्व नगर सेठ स्व भिक्षुकमल की 75 वीं पुण्यतिथि पर "ससुराल - गेंदा - फूल" नामक बन्द पड़ी पत्रिका के पुनः सम्पादन का जोखिम लिया और इसे छापा जो आज 5467 पेज में छपकर निखरी है
ताज़ा अंक में समकालीन और मृत प्रायः 932 कवियों की कविताएँ, सभी दूर से विलोपित 312 कहानीकारों की कहानियाँ, 67 उपन्यासकारों के लघु उपन्यास, 102 लघु कथाएँ, 1001 ग़ज़लें, छंद, दोहा, सोरठा, चौपाये, मुक्तक और समलोचनाएँ छापी है
मैं आभारी हूँ घोसी मल जी का जिन्होंने मेरी 123 कविताएँ, 7 कहानियाँ और दो उपन्यास इस महाभयानक विशेषांक में लगाये है, इतने सज्जन और विरल पुरुष के प्रति मैं कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ और आप सबसे अनुरोध करता हूँ कि अगले शताब्दी अंक में अपनी रचनाएँ भेजकर घोसी मल जी को सहयोग दें साथ ही पत्रिका मंगवाकर प्रचार - प्रसार में मदद करें, आर्थिक सहयोग, विज्ञापन भी अपेक्षित है
हिंदी के सभी और दुनिया के सभी विवि, शोधार्थियों और पाठकों के लिये निहायत ही जरूरी यह अंक अब उपलब्ध है मात्र 420 ₹ में डाक खर्च सहित, इसे निम्न फोन नम्बर पर फोन करके या गूगल पे करके मंगवाया जा सकता है
4203204204 - कुमारी सावित्री / श्री मलखम्ब कुमार
(पुनश्चः - कुमारी सावित्री जी को देर रात फोन करके, सन्देश भेजकर परेशान ना करें )
पुनः घोसी मल जी के प्रति संवेदनाएँ और साधुवाद
आपका अपना
◆ छपासलाल जयपुरिया
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सावधान - 29 तक देश गड़बड़ मोड़ पर है
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मेरे तोते से पूछा बोल बेट्टा क्या भविष्य एमपी का तो बोला
शिवराज केंद्र में जायेंगे राज्यसभा के सदस्य बनकर और मोदी के लिये आंतरिक चुनौती बनेंगे
◆ तोमर लोकसभा चुनाव के बाद इस्तीफ़ा देंगे और सेवा निवृत्त होंगे
◆ कैलाश विजयवर्गीय इंदौर से सांसद बनेंगे फिर से
◆ प्रहलाद पटेल टीकमगढ़ के गढ़ में खेती करेंगे
◆ उमा भारती, प्रज्ञा ठाकुर और तमाम बहनें अब आंगनवाड़ी चलाएंगी घर परिवार के लिये
◆ मोहन यादव पाँच साल रहेंगे जरूर पर भाजपा की भीतरी लड़ाईयां उन्हें तोड़ देंगी बुरी तरह से
◆ लोकसभा चुनाव में भाजपा को 15 -18 सीट भी मिल जाये तो गनीमत है
◆ सपा और बसपा अपना खाता खोलेगी मप्र में
◆ और केंद्र की बात करें तो पूरा देश एक भयानक जकड़न में होगा 24 से 29 तक, भाजपा की अंदरूनी कलह और बगावतें मोदी शाह की जोड़ी को सांस नही लेने देगी, हो सकता है संघ खुलकर पार्टी की राजनीति में उतरे और चुनाव तक लड़ने की नौबत आ जाये
◆ मीडिया जोखिम लेकर अब वंचित और हाशिये पर पड़े मुद्दों की खोज खबर लेगा और शायद 24 के बाद ढंग की जिम्मेदारी निभायेगा
◆ भक्तों की मंडली शांत, चिंता और चिता में रहेगी कि मुक्ति मिलेगी और नुक्ती बंटेगी
और अंत में प्रार्थना
मप्र, छग और राजस्थान में मनोरंजन से भरपूर रोज के विवाद, कलह और बगावत देखने के लिये आप सब सादर आमंत्रित है
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कृपया पोस्ट पढ़ने के बाद 11₹ गूगल पे करना ना भूलें - तोते की आजीविका और जीवन का सवाल है
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वर्ण और जाति व्यवस्था ज़िंदाबाद
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कौन कह रहा कि हम जाति और वर्ण व्यवस्था समाप्त करना चाहते है - और आपको लगता है भाजपा देशहित में पिछड़ों और दलित आदिवासियों के लिये काम कर रही है, संघ और उच्च वर्ग से संरक्षित और संवर्धित भाजपा समाज को पुनः आश्रम व्यवस्था में ले आई है बस अब कबीलों को पुनस्थापित करना बाकी है, बगैर किसी मीडिया के विश्लेषण के आम आदमी भी यह समीकरण और सत्ता की बंदरबांट समझ सकता है
तीनों राज्यों में ब्राह्मण, ठाकुर, पिछड़े, दलित और आदिवासियों को जिस तरह से सत्ता में जगह दी गई वह चौंकाने वाला बिल्कुल नही बल्कि वर्ण व्यवस्था और मनुवाद को पुनः सजधज के साथ स्थापित कर दिया गया है, इस समीकरणों को समझिये और यदि आपको अभी भी लगता है कि सब ठीक है तो आप भोले है बाबू
उदाहरण के तौर पर मप्र में देखिये पिछड़ा मुख्यमंत्री, एक दलित और एक बामन उप मुख्यमंत्री, एक ठाकुर विधानसभा अध्यक्ष और कमोबेश यही समीकरण राजस्थान और छग में है, ये लोकतंत्र है या मजाक, सर्वसम्मति और सर्वमान्य नेता चयन के नाम पर पूरी तानाशाही से अनुभवहीन लोगों को थोप दिया गया, क्या योग्यता है इन नेताओं की - कहाँ है लोकतंत्र , जो बड़े प्रदेश है जहाँ विकास का उजियारा अभी पहुँचना शेष है वहाँ दिल्ली तय करेगी मनमाने नाम और वो भी जाति वर्ण के नाम पर, कमाल की सूझबूझ है
उखाड़ लो , जिसको जो करना है कर लो - अब इस देश से ना जाति जायेगी और ना वर्ण व्यवस्था और एक बात लिखकर रख लें - आरक्षण अब खत्म होगा विधिवत और इसकी भनक भी किसी को नही लगेगी
सभी अम्बेडकरवादियों और दलित नेताओं को बधाई और दिलीप सी मंडल को विशेष बधाई कि बसपा, जनपक्षधरता, प्रगतिशीलता और वाम मार्ग को खत्म करके दलित और वंचित लोगों ने प्रचंड हिन्दुवाद के झांसे में हिन्दू राष्ट्र की कल्पना को मूर्त रूप देने में अहम भूमिका निभाई, सड़कों पर अवांगर्द भीड़ जो भी है वह यही है और इस बात को इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया जा रहा है और आप लोगों की सारी लड़ाई, अप्प दीप भवो की रणनीति खत्म हो गई और इस सबके लिए आप जैसे धूर्त और स्वार्थी लोग ही ज़िम्मेदार है
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"शहीदों के पाँव की मिट्टी की धूल के तिनके के बराबर भी नही है हम ", आपकी सरकार आपके द्वार का विज्ञापन दिन भर आजकल मान साहब देते रहते है, एक राज्य के प्रमुख की हिंदी इतनी खराब होना क्या दर्शाता है
ये समझ नही आता कि किस हिंदी के प्रोफ़ेसर ने पंजाब के मुख्यमंत्री को यह स्क्रिप्ट लिखकर दी है, मान साहब के प्रेस सलाहकार और बाकी ओएसडी बहरे हो गए है या उन्हें भी हिंदी गूगल ट्रांसलेशन से ही समझ आती है
मतलब ये प्रोफ़ेसर ससुरा पक्का "हेडेक ऑफ द डिपार्टमेंट" है और पोस्ट डॉक्टरेट है हिंदी में और अभी तक ढाई तीन सौ को पीएचडी करवा चुका होगा हिंदी में, विश्व हिंदी सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा होगा और साल भर हवाई जहाजों में सेमिनार, कार्यशालाएं, इंटरव्यू, चयन समिति, कुलपतित बनने के चक्कर में लगा रहता होगा और तो और मुहल्ले के प्राथमिक विद्यालय के अतिथि शिक्षकों के विदाई समारोह के चरित्र प्रमाणपत्र भी घर बैठकर लिखता होगा नगद ₹ 51/- लेकर
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|| सारे जहाँ से अच्छा गाना भूल गये है हम ||
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मप्र में दर्जनों बार पीएससी की परीक्षा में फूल आस्तीन की बाँहें काट देने, जूते उतारने, लड़कियो के अंग वस्त्र चेक करने और सभी के आंतरिक अंगों में हाथ डालकर चेक करने की खबरें आती रहती है, नीट की परीक्षा में किशोर वय के छात्रों को भी ठीक परीक्षा की इंट्री के पहले इसी तरह से प्रताड़ित किया जाता है
पर नई लोकसभा में दो लोगों को चेक नही किया गया, यह आश्चर्य है और कमाल है मतलब, और मुझे लगता है सज़ा उन युवाओं को नही मुख्य सुरक्षा अधिकारी और तमाम लोगों को मिलें जो लापरवाह रहें
◆ दूसरा पहलू ;-
युवाओं ने ठीक किया और बहरी सरकार को सुनाने के लिये यह गैस काफी थी, अहिंसा के पर्याय माने जाने वाले सांसदों का निर्बल और हथियार विहीन युवाओं को पीटना शर्मनाक है, समस्या दूर करने के बजाय उन्हें ही समस्या बताकर अपना पल्ला झाड़ लेना कहाँ का न्याय है
और अभी यह शुरुवात है, बोलने - सुनने के लिये कोई मंच शेष नही रहा है, घर - परिवार से लेकर ट्रेन या सार्वजनिक पार्क में तक लोगों से बात करना मुश्किल हो गया है, हर जगह उजबक गंवारों और नालायकों की भीड़ है और बात - बात में हावी हो जाना, बद्तमीजी पर उतर आना और निहायत ही भद्दे तरीके से गाली गलौज करना सामान्य शिष्टाचार हो गया है, हमारे जनप्रतिनिधि जब भौंडे ढंग से गालियाँ देने लगे तो आप किससे और क्या उम्मीद करेंगे, जेएनयू जैसे विवि में बात रखने कहने के लिये जो नगदी में सज़ा का प्रावधान रखा गया है वह किस दीवालिया मानसिकता का द्योतक है
2024 और फिर 2029 तक यह प्रवृत्ति बढ़ेगी और इसके व्यापक परिणाम समाज को भुगतना होंगे, अभी ही देख लीजिये आप अपने घर के बच्चों से बात करने में डरते है और अपनी इज्जत अपने हाथ रखते है समूचे विमर्श एक ओर है और प्रचंड राष्ट्रवाद एक ओर मतलब यह कि जेंडर के विमर्श भी बड़ी चालाकी से "ऑर्गेज़्म" पर सिमट गए है
युवाओं को आव्हान करता हूँ कि वे अपनी आवाज़ बुलंद करें जो लोग भगतसिंह और गांधी, सावरकर और पटेल की बात करते है उन्हें बताये कि उन्ही के काम को हम आगे बढ़ा रहें है
◆ ये सब जानते है कि ये क्या कर रहें है ; -
बुजुर्ग और कायर पत्रकार, बुद्धिजीवियों, नीति निर्माताओं या ब्यूरोक्रेट्स से कोई अपेक्षा ना करें, मैं जानना चाहता हूँ कि क्या देश के किसी भी प्राध्यापक ने 2014 के बाद सरकार के विरुद्ध या सरकार की किसी नीति का विश्लेषण भी किया है - जामिया, इग्नू हो, बनारस हो, अलीगढ़, मेरठ, वर्धा, पटना, जयपुर, झूँसी, दिल्ली, मुम्बई, इलाहाबाद, लखनऊ, विक्रम, देवी अहिल्या, भोपाल, या दक्षिण के कोई प्राध्यापक हो - सिवाय फूल पत्ती, कौव्वे, चिड़िया, गिलहरी या हवाई यात्राओं के फोटो डालने के क्या किया, ये वो हरामखोर कौम है जो विशुद्ध चाटुकारिता में लगकर अवसर तलाश रही है और यह बात मैं नामजद भी कह सकता हूँ , ये सब किताबे लिखकर पर्यावरण का नुकसान कर रहे है, एक दूसरे को कचरा देकर फोटो खींच रहे है और शर्मनाक यह है कि रोज़ आईना देखते है पर डूब मरने की भी हिम्मत नही होती इनकी
◆ पाँचवा स्तम्भ ;-
हमारा पूरा एनजीओ का मूवमेंट खत्म हो गया, कितने दिनों से आपने मेघा पाटकर को टीवी पर नही देखा या गिरफ़्तार होने की खबर पढ़ी, हर्ष मन्दर की कोई खबर , चुटका या अन्य बड़ी परियोजना के विस्थापन की कोई खबर, मजदूर आंदोलन, निजीकरण के ख़िलाफ़ कोई आवाज़, एक्शन एड या दूर दराज़ के क्षेत्रों में बीपीएल कार्ड से लेकर राशन की या रोज़गार की लड़ाई लड़ने वाले एनजीओ की कोई खबर पढ़ी, कहाँ है ग्रीन पीस के क्रांतिकारी - जो कर भी रहें थे उनके बारे में निगेटिव नरेटिव्ह बनाकर बुरी तरह से छबि बिगाड़ दी , अभी एक आदिवासी मित्र का फोन आया कि कोरकू आदिवासी महापंचायत ने उनकी संस्था के खिलाफ पुलिस में शिकायत की है वे धर्म परिवर्तन कर रहें है - शिक्षा - स्वास्थ्य के लिये काम करना कबसे धर्म परिवर्तन हो गया पर हमें घुट्टी पिला दी गई है बस, बस "मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है और इन कटुओं को खत्म करो,सारी मस्जिदों को खोदो और मन्दिर सिद्ध करो" यही देश का एकमात्र एजेंडा रह गया है, न्यायपालिका को सँविधान लागू करवाने के बजाय यही सब करने में रूचि रह गई है
2024 जून तक या जब तक केंद्र में सरकार ने बन जाये तब तक का समय बहुत मुश्किल है मित्रों , अपने जैसे सोचने वालों के लिये - एक उदाहरण से समझें - मप्र के नये मुख्य मंत्री ने कल जो खुले में मांस और ध्वनि विस्तारक यंत्रों का जो आदेश दिया उसमें नया क्या है - यह काम तो एक सामान्य थाना प्रभारी या कलेक्टर का है कि सुप्रीम कोर्ट के स्टैंडिंग ऑर्डर का पालन करवाये और शादी घर वालों और बैंड वाले, डीजे वालों से समय पर बन्द करवाये या खुले में बिकने वाली कोई भी चीज़ पर रोक लगाने का काम तृतीय श्रेणी का फूड इंस्पेक्टर करें पर इसके निहितार्थ समझे जरा
बहरहाल, आवाज बुलंद करिए पर सोच समझकर, हम सब एक बीमार और विक्षिप्त समाज के हिस्से है जहाँ सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गहरी ऊँघ में है और सोचने समझने वाले गहरी चिंता में कि "कैसे जीबो रे"
◆ रास्ता इधर है ;-
बकौल दुष्यंत
"हम पराजित है मगर लज्जित नही,
आओ सब अँधेरे में सिमट आओ
हम यहाँ से रोशनी की राह खोजेंगे"

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