Skip to main content

रेल जलाओ and मोबाईल पर 12 to 15 Dec 2019

रेल जलाओ
◆◆◆

इधर दो चार दिनों में बहुत छोटी दूरी यानी दो से तीन घँटों के लिए ट्रेन से सफर किया , सम्भवतः 30 - 35 वर्षों बाद जनरल डिब्बे में और दुख के साथ कह रहा हूँ कि यदि इतनी ही भीड़ जो जनरल में यात्रा करती है पूरे देश मे सिर्फ एक दिन स्टेशन्स पर रेलवे के कर्मचारियों को बंधक बनाकर रखें और सरकार को जगाने के लिए हल्ला बोल कर दें ना तो क्रांति हो जाएगी सब सुधर जाएंगे डीआरएम हो, स्टेशन मास्टर हो या रेल मंत्री, जो लोग 38 से 48 घण्टे इन डिब्बों में बगैर हिले यात्रा करते है वे क्या करते होंगे
भारतीय जनता सच में सहनशील है और चुप है, मेरा बस चलता तो उन रेल गाड़ियों को चलने नही देता और आग लगा देता वही पर जिनमे जानवरों से भी बदतर स्थितियों में लोग यात्रा कर रहे थे, बाथरूम जाना तो दूर अगर सांस भी ले पायें तो बड़ी बात होती, मेरा बहुत स्पष्ट मानना है कि जो व्यवस्था लोगों को लाभ देने के बजाय बुरी तरह से अपमानित कर नारकीय जीवन मे सड़ने को मजबूर कर दें उसे जलाकर राख कर दो
इतना शर्मनाक है कि आप उस डिब्बे ने जब संविधान याद करते है कि राज्य अपने नागरिकों को गरिमा और प्रतिष्ठा के साथ जीने के अवसर देगा , घण्टा संप्रभु है राज्य, इतनी भीड़ है जब मालूम है तो क्यों नही 73 वर्षों से रेल जैसी सार्वजनिक परिवहन की सेवा को सुधारा जा रहा है , 1947 से अभी तक जो भी मंत्री रहे वे सब मूल रूप से अपराधी है और इन सबको चौराहे पर लटका कर सरेआम फांसी देना चाहिए
या फिर जनता अब रेल के डिब्बे , स्टेशन और सैलून में घूमने वाले रेलवे के कमीने और हरामखोर अधिकारियों और इंडिया पास पर घूमने वाले कुत्तों को पटरी पर ही जला दिया जाए - तब तक ये मुफ्तखोर सुधरेंगे नही और इसी से सरकार चेतेगी, मैं बता नही सकता कि कितनी पीड़ा हुई है, मैं चाहता तो स्लीपर या एसी कोच में आ - जा सकता था पर मैंने अपनी समझ के लिए लगातार यात्रा की जनरल में और इस नतीज़े पर पहुँचा हूँ
शर्मनाक है कि मूर्ति, मन्दिर और मन की बात में संलग्न सरकार को यह सीधी सी बात दिखती नही, सबसे ज्यादा हालत बिहार, उप्र, मप्र, पंजाब, राजस्थान, उड़ीसा, प बंगाल, छग की रेल गाड़ियों की है जहां स्थिति भयावह है - लोग आपस में लड़ते है और जड़ कही और है - दक्षिण भारत की ट्रेन्स थोड़ी बेहतर है क्योंकि वे शिक्षित है पर क्या इसलिए कि हम पिछड़े है जीवन भर भुगतते रहें
आग लगाओ और किसी को मत छोड़ो, जहां सैलून या विशेष कोच दिखें जिसमे एक कमीना अकेला बैठकर यात्रा कर रहा हो - उसे ऑन द स्पॉट निपटाओ और उसके बिना कुछ होगा नही
सुप्रीम कोर्ट के माननीयों से लेकर तमाम लोगों को जो विधायिका और प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े है उन सबको जनरल में बिठाइए और फिर देखिए मज़ा
मीडिया को रुपये कमाने, तलुए चाटने से फुर्सत मिलें तो कुछ और समझ आयें
मुआफ़ी क्योकि पोस्ट तीखी और कड़वी है, हल भी कानूनी नही पर तत्काल कुछ सूझ नही रहा और
***
गिरने का मज़ाक ना बनाओ , पद की इज्जत करो मित्रों - आप सबने ही वोट देकर चुना है ससम्मान
बाकी कितना कौन गिरा हुआ है - इसके लिए ना कानपुर जाने की ज़रूरत है, ना बनारस और ना गंगा पर - बकौल परसाई जी " हम इक उम्र से वाकिफ़ है "
***
ट्रेवलिंग के रास्ते में यात्रा कर रहा हूँ इसलिए सुनाई नही देगा

दूध अलमारी में है फ्रीज को गर्म करके रख देना और स्कूल से पहले खा - पी लेना, जल्दी में मैं पलंग पर भूल गई लाना , उसे भी ...

उनको बोला था जाने में दाये मुड़ोगे तो घर आ जायेगा फिर ध्यान आया वो तो घर आये है पिछली बार और लेफ्टि थे फिर फ्लैट कैसे भूल गए , ये समधी जी भी यार बहरे है पूरे के पूरे साले ..

आप सन्डे की रात को डिनर पर क्यों नही आते, होम मेड डिनर रात को खाने में मज़ा आता है और हमारी वाइफ बढ़िया बनाती है - होम मेड डिनर.....स्वीट्स, डेजर्ट जो भी लेंगे बता देना , मधुरम से ले आऊँगा...

वो कह रहे थे कि सब सस्पेंस है किसी को कहना मत, पर चालीस हजार की अंगूठी ली दो चार हीरे जड़े है तो इसमें क्या, यह कोई सस्पेंस है - पर तुम सुनो ना कहना मत इनसे कि मैंने बता दिया है ...

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही