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Khari Khari - Upkar Guide by Ammber, Faizal Khan Teacher , Youth and Agitation , Posts of 27 and 28 Jan 2022

ऊपर खादी अंदर जॉकी
नौकरी अंग्रेजी की, उल्टी हिंदी की
गांव में नही पर कोलकाता में पाठ
दिनभर फेसबुक, गाली नौकरी को
छिछोरेपन में अग्गे, नाम गम्भीरमल
आम आदमी से दोस्ती का प्रचार
आईएएस से दोस्ती का अभिमान
घर में बीबी एक - जो जूते खाये
बाजार में छमियाबाज उस्ताद और
सोशल मीडिया पर मैत्राणी संघ के झंडाबरदार
नौकरी सरकार की और गाली सरकार को
उम्र साठ की और कार्ड पर युवा
यही दुनिया असली है गुरु बाकी तो माया है
अम्बर पांडेय की #उपकार_गाइड_पाठ का अगला पाठ
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|| ढकोसला कैसे करे ||
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हिंदी साहित्य में ढकोसलों का बड़ा महत्व है। ढकोसले आदमी के सामाजिक उत्थान का कारण बनते है और प्रत्येक मनुष्य साहित्यिक संसार में अपना नाम बनाना चाहता है उसे ढकोसला-पुंगव होना चाहिए।
ढकोसले कैसे करे?
ढकोसले करना नृत्य करने जैसा है यह पक्का गाना गाने के समान कठिन कला है और इसका रियाज़ नित्य करने पर ही आप इसमें प्रवीण हो सकते है। इसके टुकड़ों के छोटे छोटे अभ्यास आप सोशल मीडिया पर प्रतिदिन कर सकते है और चिल्ला काटने का अभ्यास अपने सामाजिक जीवन में कर सकते है।
ढकोसलेबाज़ आदमी अक्सर निष्क्रियाक्रमक (passive-aggressive) होता है। वह सबकी प्रशंसा करता है और मनुष्य मात्र के प्रति करुणा मनुष्य मात्र के प्रति लाड़ दिखाता रहता है। बात करने पर लार टपका टपकाकर वह बतलाता है कीं उसे संसार से कितना प्रेम है और कि जीव मात्र से उसे कितना अनुराग है। किताबों को वह इस लाड़ के स्रोत बताते हुए अघाता नहीं।
वह प्रत्येक सभा में ऑनलाइन मंडलियों में कहता रहता है कि वह कितना विशालहृदय है और कि जो दमित है दलित है नारी है बालक है निर्बल है उसपर ढकोसलाबाज़ को कितनी करुणा है।
कितनी निजी जीवन में हम देखते है कि ढकोसलेबाज़ के कोई मित्र नहीं होते, परिजनों से उसे बैराग होता है और मित्रता उसकी केवल उनसे होती है जो उसे छापे, जो सार्वजनिक रूप से उसकी तारीफ़ करे और उसके गुण गाते रहे। ऐसा व्यक्ति अक्सर खुद को एकान्तवासी बतलाता है मगर सुबह उठते ही साहित्यिक सभाएँ लगानेवालों को फ़ोन लगाता रहता है कि उसे बोलने के लिए बुलाए चाहे तो ऑनलाइन ही बुला ले हालाँकि वह अपने खर्चे पर भी कलकत्ता या काशी बोलने आ सकता है क्योंकि साहित्य सेवा करना उसके जीवन का उद्देश्य होता है।
पूँजीवाद का विरोध करना ढकोसला कला का शिरोमणि बनने के लिए परमावश्यक है जैसे महँगे लैप्टॉप से लिखना कि कैसे ऑनलाइन संस्कृति ने प्रत्येक मनुष्य को एक उत्पाद बना दिया है या एक स्थान से दूसरे स्थान पर हवाईजहाज़ से उड़ते हुए लिखना कि वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है या साहित्य के क्षेत्र में केवल पुरुषों की किताबों की प्रशंसा करना मगर खुद को नारीवादी बताना।
ढकोसले करनेवाले अक्सर किसी साहित्यकार को अपना आदर्श बना लेते है। बनारस साइड वाले फक्कड़ाना अन्दाज़ अपनाते है और गले में गमछा लगाकर खुद को साधारण भारतीय स्थापित करते है। कहीं पर भी थूककर वे बतलाते है कि कैसे वे ज़मीन से जुड़े है। दांतों इलाज न करवाकर और पान गुटखा खा वे खुद को रूप से बेपरवाह कबीराना लुक देते है।
बिहारी बंधु सबसे पहले अपना उपनाम हटाकर जनेऊ जलाते है और अपने किसी मुसलमान भाई के घर जाकर उसके बाप के हाथ का चिकन ब्रेस्ट छीनकर फ़ोटो खिंचवाते है कि कैसे वे अब प्रगतिशीलत के उच्चतम शिखर पर पहुँच गए है। दिल्ली वाले इधर उधर के ठेलेवालों को पकड़कर फ़ोटो खिंचवा यह घोषणा करते है कि वे अब भी सड़क पर मिलनेवाले लिट्टीचोखा से पेट भरकर केंद्रीय विश्वविद्यालय में परोंफ़ेसरी कर रहे है। राजस्थानी ढकोसलेबाज़ बिना प्याज़ के अंडे और शाकाहारी शराब पीकर ढकोसले करते है। मालवी ढकोसले फ़िलहाल भाषा तक ही सीमित है और यहाँ इसका कला का वैसा प्रकर्ष नहीं मिलता जैसा साहित्यिक उत्थान के लिए आवश्यक है।
गाँधीवाद का भी ढकोसलों में ख़ासा उपयोग है। समय समय पर दायींपंथी जिन्हें वामबंधु फ़ासीवादी कहते है और वामपंथी जिन्हें दक्षिणपंथी नाज़ी या नरकगामी या हत्यारा आदि कहते है - दोनों ही गाँधीवाद का ढकोसला समय समय पर करते है। स्पा या महँगे होटलों में मिलनेवाली मख़मल की चप्पलों की तरह गाँधीवाद में दायीं -बायीं ऐसे दीगर चप्पल नहीं होती और कोई भी पैर में कोई चप्पल डाली जा सकती है। ऐसी चप्पल का नुक़सान ये है कि इसमें आदमी ज़्यादा दूर चल नहीं पाता और धड़ाम हो जाता है मगर तब तक दो दर्जन किताबें छपवा सकता है।
साहित्य के प्रति अत्यंत गम्भीर भाव का ढोंग, चाशनी-जिह्वा और कठोरतम सत्याग्रह का अभिनय यह ढकोसलाचंदों के आभूषण है और एकबार वह चड्डी के बिना निकल जाए इनके बिना नहीं निकलता।
यदि वह ढकोसला नहीं कर सकते तो आप परचून की दुकान खोल लेना चाहिए या पापड़ का कारख़ाना डाल लेना चाहिए। साहित्य में आपका कोई भविष्य नहीं है।
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"तमसो मा ज्योतिर्गमय "
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शिक्षक चाहे तो देश बदल सकता है अभी भी, और तुम निकम्मों, नौकरी के मारों, पढ़ाना - लिखाना भी सीखो दिनभर फेसबुक पर रहते हो , अपनी कार, बाइक और झरने, बीबी - बच्चों, कुत्ते बिल्ली के फोटो डालते रहते हो, साहित्य, इतिहास और विज्ञान के ज्ञानी बनकर ज्ञान देते रहते हो
पटना के फैज़ल खान माड़साब को देख लो - असली क्रांति वही ला रहा है, पढ़ने - पढ़ाने से लेकर अंधेरों से लड़ने की क्रांति, असली - नकली और सच्चाई को भेदने की शक्ति और हक़ीक़त से पहचान कराने की शक्ति
है कोई मास्टर पिछले 75 वर्षों में जिसने यह अलख जगाकर देश की तथाकथित सबसे मजबूत सरकार को निर्णय पलटने पर मजबूर कर दिया, है कोई जिसपर पुलिस और प्रशासन ने दबाव देकर कहलवाया हो कि आज छात्र आंदोलन ना करें और नेशनल मीडिया उसके 8 मिनिट के वीडियो जारी करें
वह ना मात्र अपने विषय में धाकड़ है, पढ़ाने की उन्नत तकनीकों से वाकिफ है, लाखो फॉलोवर्स ही नही उसके - बल्कि वह छात्रों को शिक्षा को ग्रहण कर संगठित होकर बदलाव करने को प्रेरित कर रहा है
यदि तुम नही समझ सकते तो छोड़ दो, बीबी बच्चे पालते रहो अपने, चाटुकारिता करके घर मुहल्ले के पास के स्कूल कालेज में पोस्टिंग करवाकर टाईम पास करो, रोज़ जाकर समोसा खाओ, ट्यूशन पढ़ाओं, सोशल मीडिया पर कविताएँ पेलते रहो, कहानियां लिखकर हांजी - हांजी करते रहो, पर कछु ना कर पाओगे जीवन में - वैसे ही आधी जिंदगी आयएएस ना बन पाने की कुंठा में निकल गई
फैज़ल खान - शिक्षक नही असली शिक्षक है - जो शिक्षा और परिप्रेक्ष्य दोनो जानता है, और शिक्षा में क्रांति लाने वाले अजीम प्रेम टाईप फर्जी फाउंडेशन हो या टटपुँजिया एनजीओ जो 40 - 50 वर्षों से शिक्षा में नवाचार और दुनियाभर के धत कर्म कर रहे थे - नवाचार और सृजन के नाम पर आज करोड़ों के मठ बनाकर बैठ गए है बन्द कमरों में, रिटायर्ड होकर पीएफ का रुपया उड़ा रहें है - क्या उखाड़ लिया इन्होंने शिक्षा में सिवाय अपने धंधे स्थापित करने के, निकम्मी नालायक औलादों के लिए दुकान खोलने के और अभी भी इनकी हवस पूरी नही हुई रुपया कमाने की - जो कार्पोरेट्स घरानों की गुलामी कर मनमांगी रिपोर्ट लिख रहे है - डूब मरो
जो भी हो सही या गलत, पर देश को फैज़ल खान जैसे शिक्षक और कफ़ील खान जैसे डाक्टर की आज जरूरत है बाकी तो सब बकवास है
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संघी और कुपढ़ों ने युवाओं के ख़िलाफ़ कुतर्क शुरू कर दिए है, वाट्सएप की फैक्ट्री से पढ़े लिखें गंवार हाजिर है असला बारूद लेकर, अजीब मूर्खों की जमात है - डाक्टर इंजीनियर, सीए से लेकर गधे घोड़े भी वाट्सएप और आईटी सेल का गोबर ले आये है , अफसोस देश ने इतना खर्च करके इन मूर्खों को काबिल बनाया मतलब हद है , देखिये एक जैसा कचरा दस जगह एक साथ है - अग्रवाल ट्वीटर भंडार की तरह
इस सबके पीछे मूल कारण समझे बिना कुछ कहने का अर्थ नही, नीचतम और घटिया सरकार के क्रिया कलाप नही देखें और कुतर्क हो रहे है, सीधी बात "मोदी बदलो - देश बदलो"
नोटबन्दी से लेकर बेरोजगारी, निजीकरण, हिंसा, मोब लिचिंग, दस लाख का सूट, कोरोना के नाम पर षड्यंत्र, लॉक डाउन के नाम पर कारपोरेट के दो गुलामों ने अम्बानी - अडानी के सामने देश परोस दिया और बिछ गये
युवाओं को गाली देने से पहले उनके रोजगार की व्यवस्था करें यह सरकार, ज्यादा दूर नही अपने जिले के किसी पिछड़े ब्लॉक ही चले जाएं, कोई पहाड़ी ही देख लें जहाँ मजदूर पलायन पर आकर खनन करते है, भूखे मर रहें है, कोरोना के समय के दृश्य याद कर लें जब सड़कों पर प्रसव हो रहे थे, कहाँ थे दो गुलाम, समाज ने आश्रय दिया लोगों को
शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर आजीविका का सत्यानाश कर दिया - देश कभी इतना कंगाल नही था कि हवाई अड्डे और स्टेशन बेचना पड़े पर मणिशंकर अय्यर के नीच ने वो भी बेच दिए
बाकी सब भड़ास लिखी है इन आईटी सेल के मगज लड्डूओं ने, संघी कुतर्कों से देश नही चलता, अंध भक्तों को पंजाब - यूपी - उत्तराखंड में पसीना पोछते देखकर मन प्रसन्न है, कोई भी जीते पर जिस तरह से जनता जूते मार रही है योगी के विधायकों और सांसदों को कसम से जय सिरी राम बोलता हूँ आजकल , देश के सबसे तगड़े अमित शाह, राजनाथ को घर घर पर्चे बाँटते देख मन प्रफुल्लित है, योगी का चोला उतर गया है, सारी महंताई झड़ गई है और जनता के बीच जाने की हिम्मत नही है
अभी तो सड़क पर दौड़ाकर पीटेगी यही जनता तब अंधभक्तो को भी बख्शा नही जाएगा - यह नोट किया जाये
बहनों , भाइयों से निवेदन कि धीरज धरें - फर्जी अकाउंट्स पर ध्यान दें अपने काम पर फोकस करें और भैया - दीदी देखना मोदी प्रेम में अपना घर न बिगड़ जाए , वो क्या है ना अपन तो सिंगल है आपके तो परमेश्वर होंगे या गृह लक्ष्मी - मोदी तो सब त्याग चुका है बापड़ा गरीब फकीर ही है पर आप तो इज्जतदार हो

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