Skip to main content

Posts

Khari Khari, Drisht Kavi, Man Ko Chiththi and other Posts from 22 to 31 Oct 2024

ic #Immaculate on Amazon Prime एक नन की कहानी - कैसे ईसाई धर्म में एक युवा स्त्री को शोषित किया जाता है और धर्म की ध्वजा को फहराने के लिए दमित किया जाता है एक वर्ष एक कॉन्वेंट में पढ़ाया है, सामाजिक क्षेत्र में काम किया है तो "सिस्टर्स" और उनके जीवन, घुटन, पीड़ा और जीवन में खत्म कर दी गई महत्वकांक्षाओं से बहुत बारीकी से वाकिफ़ हूँ, फादर, ब्रदर, बिशप, मदर सुपीरियर, आदि की इस पूरी श्रृंखला यानी हेरार्की जो इस खेल में शामिल है - से परिचित हूँ बहुत वर्ष पहले [ 2004 ] छग के रायगढ़ जिले में था तो 4 सिस्टर्स की आत्महत्या की खबर पढ़ी थी - जो गर्भवती हो गई थी, तो वहाँ की मदर से पूछा था तो उन्होंने कहा था " when he knocks the door at 12 in the night, we being the Sisters, can't say No Sandip, the Brother, the Father, the Bishop are incarnation of Jesus", इंदुप्रभा का उदाहरण सबको याद ही होगा, मथुरा - वृंदावन में नवविधवाओं के शोषण की कहानियों से हम वाकिफ़ है ही - मीरा नायर की फ़िल्म वाटर याद ही होगी ना, इस्लाम में पाशविकता की हद तक की कहानियाँ रोज़ सुनते ही है हम , आर्मी स्कूल
Recent posts

Khari Khari, Man Ko Chiththi, Drisht Kavi and other Posts from 16 to 21 Oct 2024

  " इस घट अंतर अनहद गरजै " ●●● अभी एक मित्र का फोन आया था अजमेर से तो बात करते - करते हम विचारने लगे कि वो माहौल ही खत्म हो गया - सरलता, सहजता और अपनत्व वरना तो काम में कितना लड़ते थे और फिर साथ मिलकर काम करते थे, आज तो डर ये है कि यदि आपने किसी को कुछ मुस्कुराकर भी कह दिया तो आपकी नौकरी जाएगी या आप को फायर कर दिया जायेगा *** संस्थाओं को टिककर काम करना नही है सरकारी हो गई है - अब ना सरोकार है , ना जुड़ाव, बस ठेके पर काम लेने है, ले देकर फंड जुगाड़ना है फिर थोड़ा बहुत दिखावे पुरता काम करके, सुंदर सी रिपोर्ट बनाकर आख़िरी किश्त वसूलना है, कलेक्टर को दस प्रतिशत देकर फाइनल पेमेंट लेना और अगले जिले में निकल जाना है - अगला जिला या मुहल्ला तलाशना है - जो है उससे सन्तुष्टि भी नही "और - और एवं और" की भूख ने सब खत्म कर दिया है - मानवता, कार्य संस्कृति, परस्पर सहयोग, मूल्य, वैचारिक भिन्नता की जगह,सम्मान, और अपनी बात कहने की आज़ादी भी यदि आप कुछ सुझाव दें तो सुनना पड़ता है कि "आप क्यों रायता फ़ैला रहें है, हम सब ओवर बरड़ण्ड है" *** देशभर में फेलोशिप का मकड़जाल बिछ गया है - गांधी

Khari Khari, Drisht Kavi and other Posts from 11 to 16 Oct 2024

जुगन जुगन के हम जोगी || ●●●●● सामाजिक नागरिक संस्थाओं के काम का एक समय होता है - जब वे फील्ड में काम करती है, लोगों से जुड़कर, समस्याओं को समझकर और बड़े काम तथा पैरवी करके वे जनसुमदाय के लिये वृहद काम करती है, इनके काम से नीतियों और क्रियान्वयन पर बड़ा असर होता है इसमें कोई शक नही, पर एक समय बाद संस्थाओं में सिर्फ़ और सिर्फ़ जमे और बने रहने की होड़ लग जाती है, हर तरह के काम के लिये ये फंड जुगाड़ने में लग जाते है - शौचालय बनाना हो एड्स रोकने के लिये कंडोम प्रमोशन करना हो और फिर एक भयानक किस्म का दुष्चक्र आरम्भ होता है कि यह मेरा काम नही, यह उसका काम है, यह मुद्दा हमारे फ्रेम वर्क में नही, यह करने से एफसीआरए पर असर पड़ेगा और इस व्यक्ति या कार्यकर्ता होने से काम बिगड़ेंगे आदि आदि, एक दिन सारे कॉमरेड लोग किसी बिरला या जमनालाल बजाज परिसर में करोड़ो का दफ़्तर बनाकर विलीन हो जाते है इसलिये मुझे दो बात समझ आती है कि एक - संस्थाओं को एक अवधि के बाद फेज़ आउट हो जाना चाहिये, अपना सर्वस्व समुदाय या दूसरी संस्थाओं को देकर उस जगह या फील्ड से अलग हो जाना चाहिये - ताकि ठहरे हुए तालाब के पानी को सड़ने के बजाय वहाँ