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Posts between 5 to 12 August 2018

दुख करुणा से भरा है जो हमें माँजता है
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हम सब लोग खत्म हो रहे है हर पल , हर क्षण - इसलिए अपनी बात शुष्क ढँग से कहता हूँ
जीवन तुम्हारा है इससे सबक लो और सीखो कि मौत और जीवन के बीच छोटा सा फासला है और इसी में जीवन का सार निहित है और इसी छोटे से एक पल में जीना है
मैं जो हंसता हूँ और सबसे मिलता जुलता हूँ यह भयावह अकेलापन ही है जो सबके बीच रहकर सालता है और यही माँजता भी है
निराशा अच्छी है, शरीर टूटने के बाद और बिस्तर पर लंबे समय तक पड़े रहने के बाद अपने और परायों में पहचान बहुत आसान हो जाती है और यही से मनुष्यता के मूल गुण और मूल्य भी समझ आते है, व्यवहारिक जीवन के फ़लसफ़े और भीमकाय भाषा के प्रच्छन्न मुहावरे भी पर यही से एक झीनी शुरुवात भी है
लौटना सबको होता है सारी निराशा और बहुत हतोत्साहित होकर भी पर क्या किया जाएं, भाव प्रवीण होकर या सघन अनुभूति में कुछ छोड़ा भी नही जा सकता ना
जीवन इस सबके बाद भी श्रेष्ठ है अनंतिम है और सुहाना है, हम सबको जीना ही होगा मरने तक इसलिए नही की हमें या मुझे जीना है बल्कि इसलिए कि रक्त गंगा बहनी चाहिए, वसुंधरा पर हमारे वंशज बनें रहें
ये दीगर बात है कि किन्ही निजी प्रेम प्रसंगों के चलते उससे कह दिया था कि मेरा बीज इस धरा पर नही उगेगा ताकि मेरे बाद तुम्हे याद रखने वाला कोई नही हो और यह कहानी खत्म हो जाएं पर तुम अभी शैशव काल मे हो और बहुत जल्दी जीवन का कड़वा घूंट पीना पड़ा है अस्तु निराश हो गए
मैं समझ सकता हूँ कि इस कच्ची उम्र में जब हड्डी और मज़्ज़ा का सहसम्बन्ध बना ही हो और वे टूटकर बिखर जाए लोहे की कड़ियाँ बाहर से लगानी पड़ें कष्ट देकर तो मौत का रास्ता पीड़ा झेलने से आसान नजर आता है पर यह पीड़ा और मौत भी कोई इलाज और स्थाई तो नही ना
खैर, लौट आओ सब ठीक हो जाता है, जब सभ्यता के दामन में बड़े बड़े परिवर्तन हो गए तो यह सब सामान्य है और फिर आज प्रगति तो बहुत है विज्ञान, चिकित्सा और भौतिक में तो तुम तो बेहतरीन जगह हो इस समय
हम सब राह तक रहें हैं लौट आओ जल्दी हम फिर झगड़ेंगें और जंगल की सैर करेंगे
आंखों में आँसू लेकर जीवन के लिए प्रार्थनाएँ नही की जाती, आँसू तो जीवन की उपलब्धियों और खुशी के मौकों पर सदैव अपनों के साथ बहाये जाते है, दुख अस्थाई है और जीवन शाश्वत है इसलिए अपने आँसू सम्हालकर रखों कि अभी बहुत कुछ अच्छा होना बाकी है और खुली आँखों से उन पलों का इंतज़ार करों
[तटस्थ]
( मित्र और अनुज Birendra Gautam पिछले दिनों करंट लगने से गम्भीर रूप से घायल हो गए और 15 दिनों से नागपुर में भर्ती हैं, शरीर अस्त व्यस्त हो गया है, टूट फुट गया है, पीड़ा - सन्ताप और दर्द के भयावह दौर से गुजर रहे है ; रोज की जांच, ऑपरेशन और तकलीफ ने उन्हें थोड़ा निराश किया है आज वाट्स एप पर उन्होंने इस दर्द को बयाँ किया तो मैं यह सब एकालाप की तरह लिख रहा हूँ - क्योंकि वे बहुत उम्दा काम ही नही कर रहे बल्कि आदिवासियों की आवाज को संगठित कर सशक्त तरीके से फैला रहे है, पेशे से इंजीनियर है और उमरिया जिले में काम करते है
आइये दुआ करें कि यह 27 साला युवा जल्दी ठीक होकर मैदान में आएं )

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दो महान सड़कों और बनारस के पुल का जश्न अभी मना भी नही था कि आज बस्ती का पुल जमींदोज़ हो गया
काँग्रेस ने रुपया खाया पर इत्ता भयानक भ्रष्टाचार नही किया मोटा भाई , अब गुरु टेंशन ये करो कि नितिन गड़पकरी किसके नाम बेनामी रिपोर्ट लिखवाते है
खैर निहाल चन्द्र के बाद इनका तो रेल मंत्री भी रेपिस्ट निकला यार , अपने मोई जी क्या क्या देखें - साला काँग्रेस की बराबरी करते करते दम लगा दें क्या
चिंता मत करो कांवड़िए है, अंध भक्त है और फिर अडानी अम्बानी का रुपया, ईवीएम मशीन दूध देगी , चिंता मत करो सबसे बड़ा कल्लू मामा है जो बीच मे आएगा उसे शूट एट स्पॉट कर देगा कोई लोया नही - सॉरी लोचा नई होने का
भला हो आसंदी का कि कल तुम्हारे बोले और बिके शब्द रिकॉर्ड से हटाए गए - उद्योगपतियों के हाथों बिककर देश के बैंक और मुद्रा को वैसे ही बेच खाये थे 8 नवम्बर को
नेहरू, इंदिरा , राजीव, गुजराल, वीपी सिंह ने लोकसभा में इतनी छिछोरी मसखरी नही की कि उन्हें लेकर किसी को आंख दबाकर हंसना पड़ा हो, लोहिया जयप्रकाश के भाषणों पर हजारों पी एच डी इसी देश के लोगों ने की है और उनके सबके लिखें और बोलें एक एक शब्द संरक्षित है पर अफसोस तुम्हारी मसखरी अदायें और लिखें को सदन की कार्यवाही से हटाना पड़े यह अगर नही सोच रहें तो लानत है ऐसे मूर्ख बुद्धिजीवियों और समर्थकों पर जो विशुद्ध मूर्ख है
आओ, आओ 2019 खाली मैदान है , तुम भ्रष्टन के - भ्रष्ट तुम्हारे
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कल देश का संविधान जलाया गया
मुझे तो लगता है भारत रत्न से नवाज़ा जाए इन्हें
मोदी राज में कांवड़िये और संविधान जलाने वाले राज करेंगे
सुप्रीम कोर्ट पिद्दी का शोरबा बन गया है जिसके आदेशों की कोई बखत नही है
क्या है कि अब भीड़ से समझौता कर लेना चाहिए 4 वर्षों में जो तंत्र और गुंडाराज स्थापित कर लिया है उसे कैसे हटाएंगे और यही भीड़ तो ताकत है , वोट है जो किसी पहलू खान को मारती है, जुनैद को मारती है, बलात्कार का समर्थन करती है , स्थानीय अधिकारियों को काम नही करने देती, अस्पतालों में डॉक्टरों को मारती है, हाई कोर्ट में जजेस के चेम्बर में घुसकर वकीलों को मारती है, कोर्ट में छत पर चढ़कर भगवा झंडा फहरा देती है, सोशल मीडिया पर गाली गलौच करती है, धमकाती है
गुरु मजे करो, अब ये भीड़ किसी के बाप के कंट्रोल में नही आ रही क्योकि इन्हें ना नौकरी है ना काम और रोटी देने की हिम्मत सरकार की नही क्योकि सरकार खुद दीवालिया हो गई है बैंक से लेकर बाजार तक, सभी संविधानिक संस्थाओं को खोखला खुद ने किया है तो अब क्या करोगे
सन 2019 में निश्चित जीतोगे अभी तीन राज्यों में भी पर याद रखना ये ही भस्मासुर तुम्हे खा जाएंगे और तुम्हारे निशान इतिहास तो दूर वर्तमान की जमीन पर नही मिलेंगें
अब बोलो, नंगा सच स्वीकार नही करोगे
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अभी 6 अगस्त को ही लिखा था कि मप्र में भी बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं - आज के समाचार पढ़कर आहत हूँ और दुख भी हुआ कि अभी तक राज्य महिला आयोग, मानव अधिकार आयोग, राज्य बाल आयोग को स्वतः संज्ञान लेकर पूरे प्रदेश में कार्यवाही करना थी
मामाराज में आश्रय और प्रश्रय पाकर कई लोग मजे कर रहें हैं , दुर्भाग्य से सत्ता के शीर्ष एवम ताकतवर लोगों से जुड़े ये लोग अब मूक बधिर महिलाओं को नही छोड़ रहें हैं
लाड़ली लक्ष्मियों का प्रदेश, निकम्मा विपक्ष और कर्मशील भाजपा - क्या उज्ज्वल तस्वीर बनाई है प्रदेश की
इंदौर के एक निजी मेडिकल कॉलेज में दो बेटियां आत्महत्या कर लेती है क्योंकि फीस और दमन इतना ज़्यादा है कि सरकार नाम का डर नही है - गुंडे मवाली मिलीभगत से मेडिकल कॉलेज चला रहे हैं , बाकी विषयों की हालत मत पूछिए, सरकार अभी तक कुछ नहीं कर पाई है और गुंडों की हिम्मत बढ़ती जा रही है, आपके राज्य के विभिन्न बोर्ड के अध्यक्षों ने बड़े बड़े स्कूल कॉलेज खोल लिए और बी एड से लेकर तमाम डिग्रियां बेच रहे हैं
होस्टल चलाने वाले धँधा चला रहे हैं और शासकीय अनुदान ले रहें हैं, आदिवासी इलाकों में ट्रैफिकिंग के मामले उजागर है पर कोई फर्क नही पड़ता किसी को
महिला बाल विकास विभाग की मंत्री के क्षेत्र में ही वेश्यावृत्ति बहुत ज्यादा है महाराष्ट्र बॉर्डर होने से पर कोई कार्यवाही नहीं
इक्वेशन्स और विकास संवाद की एक रपट के अनुसार खजुराहो से लेकर उज्जैन में बच्चों के साथ दुराचार के मामले बहुतायत में है - कौन बोलेगा, जब खजुराहो में एक महिला साथी ने पुलिस के माध्यम से कुछ कार्यवाही करना चाही तो स्थानीय प्रशासन ने संगठित गाइड, होटलों और दलालों के बजाय सही काम करने वाले कार्यकर्ताओं को परेशान और प्रताड़ित किया
आपको लगता है कि NCRB की रिपोर्ट यूँही मप्र को महिला हिंसा में अग्रणी और सर्वश्रेष्ठ बताती है तो आपको गर्व होना चाहिए कि 2006 के मुकाबले महिला हिंसा, बलात्कार और बाकी प्रकरणों में 376 % बढ़ोतरी हुई है
जी हां - यह सुशासन है शिवराज जी का और वे सिर्फ फ्री और निशुल्क शिक्षा, महिला संरक्षण, बेटियों के लिए कानून, नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण, आदिवासी हितों और सुरक्षा की बात करते नही अघा रहें, एक पूर्व ताकतवर नेता तो बाकायदा बेटियों की खरीद फरोख्त में एक एनजीओ के साथ शामिल थे जो अब प्रदेश के बाहर संगठन में सक्रिय है, इनके पेंशन घोटाले की रिपोर्ट तो आजतक सामने आ ही नही पाई
मप्र में व्यापमं, नर्मदा यात्रा, सिंहस्थ, लिम्का बुक रेकॉर्ड के पौधारोपण, खनिज, फर्जी एनकाउंटर से लेकर भर्ती और भ्रष्टाचार, कृषि कर्मण अवार्ड 5 बार लेने के बाद भी किसान आत्महत्या में बढ़त, भावान्तर योजना के घपले, कुपोषण के मामले तो छोड़ ही दीजिये
आगर जिले की गौशाला के हिसाब भी नही गिना रहा अभी जिसका उदघाटन मोहन भागवत जी ने आपके साथ किया था - जिंदा बेटियों की सुरक्षा नही कर पा रहें तो गाय बछड़े को छोड़ ही देता हूँ फ़िलवक्त
15 साल खूब कोस लिए दिग्विजय सरकार को, काँग्रेस के 50 साला शासन को - पर एक बार आईने के सामने खड़े होकर पूछना कि 15 साल आपने क्या किया तो समझ आएगा और भोपाल के दलाल पत्रकार, चैनल्स के घटिया लोग, आपकी चाटुकारिता कर किताब के नाम पर बकवास लिखने वाले मीडियाकर्मी और भास्कर जैसे अखबार को जब समझ आएगा कि आपकी नाव डूब रही है तो वे सबसे पहले भागेंगे याद रखना हुजूर ए आला
जनता सब देख रही है राजनैतिक दलों के आकाओं और अब माकूल जवाब देने का भी समय आ गया है
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एक हिंदी के शोधार्थी ने कहा कि आप हिंदी में बहुत गलती करते हो लिखने में और व्याकरण में, बहुत सारे हिंदी के तथाकथित प्रकांड पंडित और स्वयम्भू हिंदी के फ्रस्ट्रेटेड स्कूल मास्टर उर्फ प्रोफेसरान साहब भी है जो विवि या महाविद्यालय में जा ना पाएं और "अमर घर चल" "जल भर" पढ़ाते - पढ़ाते बूढ़े हो रहे हैं - अक्सर मेरी गलतियों को गिना कर महान बनते रहते है
मैंने कहा - मातृ भाषा मराठी, शिक्षा अंग्रेज़ी साहित्य में - मालवी, निमाड़ी में बचपन के संस्कार मिलें और काम के दौरान उर्दू, भीली, गौंडी, हल्बी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, अवधी, मैथिली, पूर्वांचल, बघेली, बुंदेलखंडी, गुजराती, आखोमिया, पंजाबी, हरियाणवी, मलयाली, तेलगु, बंगाली, फ्रेंच, जर्मनी, डच और विदर्भ से लेकर मराठवाड़ा की लोक भाषाओं में जमीनी और शैक्षिक काम करते करते 52 की उम्र हो गई - तो अब मैं क्या भूलूँ - क्या याद रखूँ
जहां तक विराम चिन्हों की बात है - विराम चिन्ह नही लगाना सायास है - गलती नही, मेरा मानना है कि भाषा मुक्त है एक नदी के प्रवाह की तरह, समुद्र की लहरों के चिंघाड़ की तरह जो गर्जना करती है और हर पल बदलती है - इसमें ना अर्ध विराम है, ना पूर्ण विराम - ना विस्मय या प्रश्नवाचकता
यह हमने ही दायरे बनाकर सब प्रपंच रचा है, और फिर सबसे बड़ी बात सम्प्रेषण की है - अगर यह सही जा रहा है तो काहे को टेंशन लेते हो, तुम लोगों को तो हिंदी के कफ़न और साये में ही या अपने कुएँ में रहकर वही जली - कटी सुननी और सुनानी है, साथ ही तुम्हारी रोटी और परिवार इसी हिंदी से चलेंगें, पर मैं तो भाषा का खिलंदड़ हूँ - मलंग और मस्ताना - मुझे शुचिता और शुद्धता से क्या
अपनी बात कहनी है - जोर से, पूरे दम से कहूँगा और यूँही गलतियाँ करता रहूंगा, जब अपने जीवन मे बंधन नही पालें तो भाषा में क्यों और आप अपनी मास्टरी अपने पास रखें , मेरी मीठी गलतियाँ ढूंढ़ने के बजाय अपने को तराशें
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यह प्रतिबद्धताओं से खिलवाड़ और वैचारिकी की हत्याओं का दौर है सुविधा के लिए ही नही बल्कि जीने के संघर्ष के लिए - क्योकि डर और खौफ़ ज्यादा हावी है - सिर्फ खुद के लिए नही, बल्कि अपने घर - परिवार और गौत्र के, कुनबे के लोगों के साथ बचे रहने के लिए
आज एक प्रतिष्ठित पत्रकार ने राज्यसभा के उप सभापति का पद ग्रहण किया और उनके मित्रों ने बहुत कुछ गुणगान किया
उनके मित्रों ने मित्र धर्म निभाते हुए आज यशगान तो कर दिया पर राजनैतिक पक्ष पर यह कहकर चुप हो गए कि यह उनका निजी मामला है
एक पब्लिक फिगर का निजीपन क्या है जबकि आप रात दो तीन बजे तक ट्रेडल प्रेस पर प्रूफ चेक करते रहें हो और घनिष्ठ रहें हो, जीवन के अनमोल पल साथ बीताएँ और फिर आज फासिस्ट वादी शक्तियों के साथ - क्यों
पर आज बोलेंगे तो टिकिट कन्फर्म कराने से लेकर बाकी सब सुविधाएं मिलने की संभावनाएं धूमिल हो जाएंगी
सिर्फ अविनाश दास ने दिलेरी से यह सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि सांसद रहते टिकिट कन्फर्म करवाएं, अमृत ने वाजिब सवाल उठाया कि जब बहुत क्रांतिकारी थे, पत्रकारिता के उच्च मानदंड स्थापित किये तो अचानक यह निर्णय क्यों
मुझे लगा कि यह सुविधाएं भकोसने से ज़्यादा बुद्धि का इस्तेमाल करने और सांझे में नही आने पर डर और खौफ़ की तलवार है ऐसे में "मिल ही जाना पड़ेगा कौरवों में" कोई कृष्ण भी नही - जो उन्हें नीति शास्त्र सीखाएं और समालोचनात्मक ढँग से जिन्हें सीखाना था उनकी तो बाँछें खिल गई है अब
अस्तु, डर ही साथ है, सत्ता है और यश है कीर्ति की पताकाएं है जीवन मे और सम्पर्क दोस्ती ही नंगा सच है
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क्या लिखूँ
कविता, कहानी, उपन्यास उतर नही रहें
आलोचना लिखो तो लोगों को दस्त लगेंगे
आलेख लायक मेहनत करने की हिम्मत नही
शोध परक लेखन का अर्थ नही
राजनिती पर लिखने से कुछ होगा नही
व्यंग्य पर धार करने से लोग भौंथरे होंगे
अकादमिक लेखन उबाऊ है 
कोई प्रोजेक्ट लिखूँ तो रुपया कौन देगा

छोड़ो यार, मजे लो भाड़ में जाये कौन 70 - 80 कहानी लिखने से नोबल मिलेगा या तीन कविता संकलन आने से बुकर
बस मजे लो, दिमाग़ी और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहो यही बहुत है जो लोग कर रहे है, लिख रहे हैं उन्हें लिखने दें - बटोरने दें यश और धन धान्य !
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कोई पता करो बे। बच्चों के लिए काम करने का दावा कर नोबल पाने वाले कैलाश सत्यार्थी ज़िंदा हैं या टपक गए? दर्जनों बच्चियों का बलात्कार, कुछ की हत्या या बहुतों का लापता होना इसी देश में हुआ है।
मैंने कहा उसे कोई अनुदान या बड़ा पुरस्कार देने की बात करो तो दलाली करने का बड़ा प्रोजेक्ट सबमिट करेगा
एकदम फर्जी आदमी है और घोर चापलूस
बच्चों के लिए काम करने वाली और देश मे बच्चों के अधिकारों के लिए बड़े फंड देने वाली संस्थाएं जैसे Unicef, Save the Children, terres de home, Aide et Action, Action Aid, Equations, Ford Foundation से लेकर राज्यों के विभाग क्या कर रहे है इस पर भी सवाल है
कितनी संस्थाओं ने क्या किया या सोशल आडिट की प्रक्रिया में स्व पहल की है, दुर्भाग्य है कि कुछ एनजीओ ही इस घृणित कार्य मे संलग्न है
कल एक वरिष्ठ साथी ने बताया कि भोपाल के एक बड़े संस्थान जिसके नाम मे ही बचपन झलकता है, के एक कर्मचारी को तीन साल की सजा हुई एक पुराने प्रकरण में और इस कर्मचारी को बचाने के लिए भोपाल के एनजीओ कर्मी लग गए थे - किससे कहें कि पांव के काँटे निकाल दें
ऐसे में कैलाश सत्यार्थी से आप क्या उम्मीद करेंगे वह तो खुद एक बड़ी दुकान चला रहा है और हजारों का स्टाफ लेकर उनके पेट पाल रहा है
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भला हुआ जो मेरी गगरी फूटी
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6 अगस्त को 3-4 वाट्स एप समूहों के बारे में थोड़ा यथार्थ और तीखा लिखा था, कल तीन समूहों में निशाना एकदम सही लगा और इन साहित्यिक लोकतांत्रिक पुरोधाओं ने देर रात मुक्ति दी, मेरा आज इन तीन समूहों से मुक्त होने का स्वतंत्रता दिवस है
दिन भर आतंकित करने वाले और चिल्लपों मचाने वाले 3 समूहों से मुक्ति मिल गई अपने आप
नकल - चोरी चकारी और वेब पोर्टल से माल उठाकर महान बनने वालों को समझ आ गया कि यह "कंट्रोल कॉपी पेस्ट एक्सपर्ट" का खेल समूह में किसी को समझ आता है, अँधे नही है लोग, आपके फुर्सत में होने से और नेट से सीधा सीधा माल उठाकर अपना नाम अंत मे चैंपने की प्रवृत्ति से कोई तो वाकिफ है, हर कोई इतना बावला नही कि चोरी के माल को ग्रुप में पेलने के लिए आपको नोबल लॉरियट मान लें
जब देश में, समाज में चहूँ ओर सब कुछ इतना भयावह हो रहा हो तो आप एक 100 साल पुरानी रचना जो कालजयी है पर अपना दिवालिया दिमाग लगाकर कुतर्क कर उसे घटिया साबित कर रहे है या फिल्मों पर बात कर अपनी फैंटेसी बुन रहे है और रो रहे कि हीरो हीरोइन नही बन पायें
रिटायर्ड, खब्ती, घर बैठे या ऐसा काम कर रहे जिसमे समय ही समय हो और सारा दिन बैठकर तर्क गढ़ते रहें और अन्य को नीचा दिखाने की कोशिश करते रहें यही वाट्सएप का उद्देश्य है
और आखिर कुंठा की हद है - कल दोपहर, शाम और रात में तीनों समूहों के प्रशासकों ने अपुन को मुक्ति दे दी - बोला था ना जिन्हें वक्त ने कुछ नही दिया उन्हें वाट्सएप ने प्रशासक बना दिया तो कुंठा तो निकलेगी ही गुरु, एकदम प्रशासकीय अंदाज में
☺️☺️☺️ जो सहा वो किया, जो झेला वह रिफ्लेक्ट हुआ और जो ना कर पाएं वो वहां किया
गीता सार याद है ना -
* ना मैं तुम्हारे पास आया था कि जोड़ो ना मैंने कहा कि हटाओ
* ना मुझे कुछ फायदा हुआ उस समूह के चूतियापे से
* ना मेरा कुछ बिगड़ेगा उस घटियापन में ना रहकर
* ना मेरा लेखन बिगड़ा, ना सुधरा
* ना कही छपा ना रिजेक्ट हुआ तुमसे जुड़कर
* ना तुम्हारी सिफारिश की जरूरत है ना करूँगा
* ना तुम्हारी बखिया उधेड़ महिला कामरेड्स में रुचि है ना उनका लिखा रसोई घर का आख्यान पढ़ने की तमन्ना
* तुम्हारी उबाऊ कविता, कहानी और कुंठित आलोचनाएं पढ़ने से जरूर वंचित रहूँगा पर मरते समय वेदना ना होगी
जब देश मे स्थिति अराजक हो रही हो और आप अश्लीलता की हद तक एक ही घटिया कविता - कहानी या आलेख पर दो तीन - दिन बहस करें तो दिवालियेपन की क्या बात करें - ऊपर से जिज्जी की साड़ी, नाती की शादी और घर परिवार के लोग और उबाऊ कचरा साहित्य है तो आपको ही मुबारक हो देवताओं खैर,
साहित्य समाज का वह कुंआ है जिसमें आप लोग डुबकी लगाकर अपनी कालिख रोज पोछते है और समूह वो सफलता पाने की वो ओछी सीढ़ी है जिसमे रच बसकर आप सफलता के शार्ट कट ढूंढ़ते है
बहरहाल, मौज मनाइए कि एक दृष्ट दुराचारी और प्रखर निंदक को आपने हिम्मत दिखाकर बाहर किया और अब खूब ठिठोली करिये
किसी को नाम जानने में रुचि हो तो बताईयेगा सार्वजनिक करूँगा पोस्ट्स और ठिठोली के स्क्रीन शॉट्स के उदाहरण सहित
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1987 की बात है हम लोग एक बड़े कार्यक्रम में तत्कालीन राष्ट्रपति जी से पुरस्कार लेकर लौट रहे थे ट्रेन में, मद्रास रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो पता चला कि एम जी रामचंद्रन की मृत्यु हो गई है, हमें क्या फर्क पड़ना था। ट्रेन में बैठ गए लौटना तो था ही, पर फर्क तब पड़ा जब रास्ते भर सिर मुंडे हुए लोगों की भीड़ देखी और चंद्रपुर आने तक कुछ भी खाने को नही मिला
एन टी आर की मृत्यु के समय भी खम्मम और वारंगल से लौट रहा था जब उनकी तबियत ज़्यादा खराब होने की सूचना मिली तो खूब सारा खाने को रख लिया और तीन चार बोतल पानी भी कि ट्रेन में दिक्कत ना हो
जय ललिता की मृत्यु के समय त्रिची और सत्य मंगलम यानी वीरप्पन के जंगलों से लौट रहा था और करोड़ो लोगों का विलाप देखा था - स्त्री और पुरुषों के सिर मुंडे हुए और अखबारों में आत्महत्या की खबरें पढ़ी थी जो भयावह था
वाय एस आर रेड्डी के निधन पर आंध्र में यही हाल था
आज सुबह से करुणा निधि के लिए कावेरी अस्पताल के बाहर भीड़ और उनकी तस्वीरें खरीदते लोगों का हुजूम भी देखा और अब उनकी मौत पर विलाप के दृश्य देख रहा हूँ
यह हमारे देश का दक्षिण भारत ही है - जहां शिवाजी गणेशन, कमल हसन या रजनीकांत या मामूटी को सम्मान भी मिलता है और उनकी बातें भी सुनी जाती है
मुझे याद नही पड़ता कि उत्तर भारत मे महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी या राजीव लोचन नयन गांधी की मृत्यु के बाद जन सैलाब नही देखा और अब सोचता हूँ कि क्या कोई आज की तारीख में कोई नेता मर जाये तो क्या कोई भी तुर्रे खां ऐसी शानदार भीड़ जुटा पायेगा, लोग सिर मुंडाने को तैयार होंगे या आत्महत्या को
थोड़ा तंज लग सकता है आपको पर एक बार मौजूदा चेहरों पर नजर दौडाईयेगा - कश्मीर से होते दिल्ली, उप्र, बिहार, झारखंड, छग, मप्र, उड़ीसा, महाराष्ट्र, प बंगाल, असम, उत्तर पूर्व के राज्य या गोवा गुजरात तो समझ बनें मेरी भी कि जनता का "जननेता" क्या और कैसा होना चाहिए
दक्षिण के चार पाँच उदाहरण मेरे लिए तो नजीर है , उनकी मृत्यु और बीमारी लोकप्रियता का पैमाना भी - आप बताईये कि आपका क्या पैमाना है
बहरहाल करुणानिधि जी को नमन
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तृतीय या चतुर्थ श्रेणी की मानसिकता वाले विशुद्ध कर्मचारी किस्म के लोग अच्छा प्रबंधन, बाबूगिरी या एकाउंट्स तो कर सकते है पर संस्थानों को दिशा या दृष्टि नही दे सकते ना ही किसी प्रकाशन को आगे ले जा सकते है
दुर्भाग्य से मीडिया हाउसेस , पत्रिकाओं, बड़े मुनाफाखोर स्कूलों या एनजीओ में आजकल ऐसे ही लोगों का बोलबाला है जो सबसे बड़े पदों पर बैठे है और ये ही लोग करोड़ों रुपया बगैर रीढ़ दिखाएँ कमा रहें है साथ काम करने वाले भी बोलते नहीं - क्योकि घर परिवार और बीबी बच्चे पल रहें है तो बोलने का जोखिम कौन लें
ऊपर से ये नौकरी नही करते नौकरी से मक्कारी कर यहां वहां मुंह काला करके दूसरे के हक मारने के लिए सदैव तैयार रहते है और बाकी तो आत्ममुग्धता से तो ग्रसित है ही जो ज़मीर बेच चुके है
इसलिए देश में जो माहौल है उसके लिए अकेली सरकार जिम्मेदार नही है हम सब जवाबदेह है इस स्थिति के लिए...
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फिर भी पूछ लो थोड़ी नैतिकता बाकी हो या गेहूं की रोटी खाते हो.............कि लेख छाप पाएंगे या नही !!!
[एक सहायक सम्पादक को अभी पूछा जब लेख के बारे में कोई सूचना नही मिल रही, तो उस भले आदमी ने कहा कि सम्पादक के टेबल पर है लेख और वो अभी कुछ कहने की स्थिति में नही है - तो मैंने कहा उपरोक्त ]
यही हालत भास्कर प्रायोजित और अब इंदौर से प्रकाशित 'अहा जिंदगी' की है सम्पादिका महोदया नवम्बर 2017 से कविताओं पर बैठी है और अशिष्ट इतनी कि चार बार मेल लिखने पर भी जवाब देना नही है
"दो कौड़ी के चोरी चकारी से कॉपी पेस्ट करने वाले लोग जवाब नही देते और अग्रवालों ओसवालों या जायसवालों से लेकर चौथी फेल लोगों की चाटुकारिता में लगे रहकर अपनी नौकरी बचाते रहते है तो अखबार - पत्रिका का मरण जल्दी हो जाता है या वो सिर्फ बस स्टैंड पर बिकने वाली पत्रिका बनकर रह जाती है" - यह बात इसी पत्रिका के पहले सम्पादक और मित्र यशवंत व्यास ने बहुत साल पहले मुझे जयपुर में इसी पत्रिका के दफ्तर में कही थी - तब हममें से किसी को अंदाज नही था कि इतने नीचे गिर जाएगा इसका स्तर और गेहूं की जगह गोबर भूसा खाने वाले सम्पादक बन जाएंगे
पापड़ बड़ी अचार और पति को रिझाये जैसे आलेखों से मधुरीमा निकालने वाले साहित्य के सम्पादक बन जाये तो यही होगा ना
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दैनिक भास्कर कितने और लोगों की फर्जी रिपोर्ट बनवायेगा
पतित हो गया है , एकदम फर्जी , घोर चाटुकार और सत्ता का दलाल कि राष्ट्रीय प्रतीक पर शिवराज, कमलनाथ और सिंधिया का फोटो चेंप दिया इससे ज्यादा अक्ल की कमी का सबुत होगा कोई, इस पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा नहीं बनता क्या
और इस सबकी जरूरत क्या है, किस डाक्टर ने लिखकर दिया कि चापलूसी इतनी करो कि मोदी / शिवराज को लेकर हर दो माह में नकली और Fabricated सर्वे छापते रहो
दिमागी दिवालिया हो गया है भास्कर
अफसोस कि वहां अभी भी कुछ समझदार है पर वे भी भेड़ बन गए
एक अखबार का क्या काम होना चाहिए जब कोई अखबार यह भूल जाये तो उसका बहिष्कार ही मत करो - वहां के लोगों को सड़कों पर बुलाकर उनकी औकात दिखाओ और मालिकों का हुक्का पानी बन्द कर दो
बुद्धिजीविता के नाम पर चोरी चकारी से रचना कर्म में संलग्न, चरित्रहीन, आत्महत्या तक करने को आतुर,पाँच करोड़ तक देने को तैयार, पीत पत्रकारिता के शिखर जब अखबारों में बैठते है तो किसी भी अखबार को दो कौड़ी का होने में और इस हद तक गिरने में कोई समय नही लगता
यह समय बहुत सम्हलकर न्यूज आईटम, प्रायोजित खबरों और बिके हुए मीडिया के दलालों का है जो रुपये , नाम और यश के लिए सब कर रहे है
हकाले गए पत्रकार घटिया किताबें लिखकर आत्ममुग्ध हो रहे है, पुरस्कार बटोर रहें है , किताबों की गिनती कर रहें है कि आज कितनी बिकी, कुछ अपनी पुरानी सड़ी गली, भूत प्रेत की सदियों पुरानी फेब्रिकेटेड और उलजुलूल तरीकों से बनाई गई कहानियां छापने को बेताब है - जिनका कोई सन्दर्भ नही है और बाकी पत्रकारिता का मुलम्मा चढ़ाकर अपने को बेचने पूरी नंगई और बेशर्मी से बाजार में खड़े होकर भयानक आत्म मुग्ध हो गए है जिसका अब कोई इलाज नही है
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* 60 - 70 साल पुरानी कहानी
* 100 साल पुरानी विदेशी भाषा का चोरी किया अनुवाद
* अपनी या अपनों में से किसी की लिखी कहानी कविता या लेख उठा लो
और थोड़ा सजा धजा के उसे वाट्स एप पर पेल दो और 100 - 120 लोगों के मत्थे उंडेल दो सुबह सुबह
फिर दिन भर ज्ञान की बातें सुनो और सारे ज्ञानी धे ज्ञान पे ज्ञान पेलेंगे और कोई इधर उधर हुआ या विषय से अलग हुआ तो तीन चार प्रशासक किस्म के मुस्टंडे डांटेंगे और कहेंगे कि कहानी, कविता या इस चम्पू के लेख पर ही बात करो और ऐसी बहस, ऐसे तर्क कुतर्क कि पूछो ही मत - भोपाल की भाषा मे बोलूं तो "कोई खान पतला नी मूत रिया"
शाम से रात होते - होते विशुद्ध ठिलवई करो महिला हो या पुरुष अश्लीलता की हद तक और फिर चुप्पी - सुबह उठकर फिर नया माल मसाला और चोरी चकारी का माल
सब बेहद अनुशासन से, बारी बारी से तीन चार लोग ठेठ तानाशाही का दायित्व निभाते हुए कचरा लाएंगे , और तो और लोकतंत्र के नाम पर एक दिन छुट्टे लोगों को अपनी भड़ास पेलने के लिए छूट वो भी कहने को - ये मुस्टंडे उँगलबाज वहां भी सक्रिय रहेंगे
"तू मेरा चाँद मैं तेरी चांदनी" टाईप वाली चापलूसी और हर कोई जिसे कोई काम नही और बड़ी बेशर्मी से घर की बर्तनवाली से लेकर बच्चों के होमवर्क और मेहमानों के आने - जाने के जिक्र होते हुए भी 100 साल पुरानी गैर प्रासंगिक कहानी - कविता पर जो लोग चुतियापा बरसों से कर रहे हो - उसे भी वाट्स एप विवि का ज्ञान ही कहते है
वाट्स एप विवि पर सिर्फ राजनीति या मीडिया की मूर्खताएं ही उज़ागर नही होती - बड़े बड़े बल्लम और उलुकराज, गधत्व में शोध की डिग्री लिए कुपढ़ बैठे है और आप कुछ बोलोगे तो एकाध डेढ़ अक्कल फेसबुक पर आकर आपको रायता दे जाएगा कि क्यों बोलते हो - कम ही तो लोग है जो सार्थक कर रहें है और यह कहकर कान कटा कर बड़ी बुद्धि की जात में शामिल हो जाएगा जो रुपयों के लिए किसी भी जगह बैठकर विष्ठापान कर सकते है
इन चूतियों पर भी प्रतिबंध लगाओ जो ग्रुप बनाकर रोज अरबों टन गोबर करके उसे ही पगुराते रहते है वर्षों तक
और सबसे मज़ेदार ये हिंदी साहित्य के झंडा बरदार है जो साहित्य को बेचकर सत्यानाश कर रहे है, यदि अपराध बोध देखना हो तो इनके एडमिनस को देखिए जो जीवन मे कुछ नही कर पाएं पर समूहों के एडमिन बनकर हिटलर को मात दे रहे है
है आप किसी साहित्यिक समूह में या जुड़वा दूं
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जिस अंदाज में अपने अमित भिया शाह की सक्रियता इन दिनों बढ़ी है और वो मंत्रियों के बजाय हर मुद्दे पर अपना ज्ञान, वक्तव्य और लगभग निर्णयात्मक तल्ख स्वरों में लोकसभा और राज्यसभा में बोलने लगे है वह दर्शाता है कि मोई जी के पीछे सिर्फ अम्बानी नही - अडानी नही अपने जन - जन के लाड़ले अमित भिया भी है
और अपुन लोग फ़ालतू में ईच मनमोहन सिंह को के रिये थे कि सोनिया आंटी और राहुल बाबा की कठपुतली हेगी.........
अमित भिया भोत सई , खूब बोलो, राजनाथ, पियूष गोयल , सुषमा भैनजी , नितिन गप्प्करी और मोई जी की जरूरत कोई नी हेगी सदन में
वैसे भी शर्म की बात है कि देश में जेटली के बीमार पड़ने के बाद कोई इस्थाई वित्त मंत्री नी है और अब समझ आ रिया है कि वो काम भी आप कर रिये हो, बैंक बचाएं - पांच हजार करोड़ फिर इकठ्ठा कर लिए फिर अब किसको भगवा रिये हो
कित्ता काम करते हो यार इन सब के बदले और इन कमजर्फ और मक्कारों से तनख्वाह लेते हो कि नई ? और आजकल कोर्ट कचहरी के फैसले लिखने के लिए कोई रखा कि नई , नी तो तीन चार फुरसतिये वकील मेरे दोस्त हेंगे भेज दूं............एकदम "रंग दें तू मोहे गेरुवा" वाले हेंगे ---
सई भी है नी अब मोई जी तो बिदेस घूमते रहते हेंगे देस में कोई तो मर्द चईये कि नी चईये..............
बोलो बोलो बोलो ..............
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अक्सर किसी का परिचय देते हुए कहता हूँ यदि कोई साथ हो और कोई अन्य पुरुष पूछ लें कि ये कौन तो-
* परिचित है पुराना या नया
* प्रसिद्ध कवि, कहानीकार, आलोचक है
* मास्टर, डाक्टर, वकील, प्रोफेशनल या एनजीओ कर्मी है
* पत्रकार है , दलाल है, अधिकारी है या ब्रोकर है
* भाई है , रिश्तेदार है या मुहल्ले वाला है
* साथ पढ़ा है या चाकरी साथ करता था
* चोर है, लफ़्फ़ाज़ी करता है, कॉपी पेस्ट एक्सपर्ट है
* आत्म मुग्ध है, बुद्धिजीवी है या बड़े पद पर है कहीं
*आत्मग्लानि या अपराध बोध का शिकार है
*महत्वकांक्षी या काँधे पर चढ़ कान में ... वाला है
आज तक बहुत ही कम लोगों के बारे में कहा कि
" मेरा दोस्त है " और ये ही मेरी निज कमाई और उपलब्धि है कम्बख़्त
[ बस जीवन मे लोगों को बहुत बारीकी से पकड़ना और पहचानने का हुनर सीखा है और इसे गंवाना नही चाहता ]

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