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Showing posts from November, 2014

सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर का स्वास्थ्य भयानक खराब है.

Abhishek Rawat  ये मनावर (धार) के रहने वाले है और इनसे फेसबुक पर दोस्ती हुई थी अभी जबलपुर आया हूँ तो सोचा मिल लूं सो प्रदेश के प्रसिद्द सुभाष चन्द्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर, में पहुँच गया आज शाम को. जहां से अभिषेक आर्थोपेडिक में मास्टर डिग्री कर रहे है. अभिषेक ने बहुत सम्मान से मेरे पाँव छुए और फिर अपना वार्ड दिखाने ले गए और वही पास में एक दस बाय दस के कमरे में ले गए जहां तीन पोस्ट डिग्री कर रहे डाक्टर रहते है. एक साथी कर्नाटक के है. कमरा देखकर रोना आ गया, इतना बुरा कमरा था  कि आप सोच नहीं सकते, मेरा मन रोने को हो आया कि जिस प्रदेश में डाक्टर ऐसे कमरों में रहने को मजबूर कर दिए जाते हो वे आगे जाकर कैसे सरकारी अस्पतालों को ठीक करेंगे? पुरे कमरे में इतने बड़े बड़े चूहे है कि डा सौरभ और ये दोनों डाक्टर हाथ पाँव में दस्ताने पहनकर सोते है क्योकि चूहे ना मात्र इनके बेग काट लेते है, सामान खा जाते है बल्कि इन्हें बुरी तरह से काट लेते है जिससे इनके हाथ पांवों में घाव हो जाते है. कमरे में जाले, बाबा आदम के जमाने का पंखा और बदहाल हालत में पड़े संडास बाथरूम जिनमे झांकने की हिम्मत नहीं थी मे

पता नहीं- सोनल शर्मा का संकलन

"पता नहीं" सोनल का पहला काव्य संग्रह है. सोनल पिछले कई बरसों से समाज के ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यक्रमों में लगी हुई है और कविता उनके लिए एक महत्वपूर्ण जगह है जहां वे अपने आपको सम्पूर्ण रूप से अभिव्यक्त कर पाती है. इधर हिन्दी की सभी पत्रिकाओं में सोनल की कवितायें प्रमुखता से छपी है और वे लगातार चर्चा में रही है. सोनल की कवितायें हमें एक नए रचना संसार में ले जाती है जहां भावनाएं, द्वन्द और एक रोशनी की राह खोजती छटपटाहट है, यह राह उन सभी गलियारों में से निकलती जो मन क े कही गहरे कोनों से कवि अपने आपसे एकाकार होता है और भाषा और बिम्बों से अपना रचना संसार रचती है. सोनल इन्ही सबके बीच लोगों की आवाज, अपने स्वरों में मिलकर एक वृहद् संसार रचती है जो उन्हें कविता के नए और ठोस धरातल पर ले जाता है और अपने तई वे एक ऐसी दुनिया बनाती है जो उन्हें बाकी सबसे अलग बनाता है और ये कवितायें एक सार्थकता देते हुए व्यापक फलक पर अपने होने को चरितार्थ करती है. अच्छी बात यह है कि सोनल का पहला काव्य संग्रह अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद से आ रहा है जिसका ब्लर्ब हिन्दी के ख्यात कवि और

सारा नमक वही से आता है जहां बूंदों के बीच प्यास है- बहादुर पटेल का संकलन

बहादुर पटेल हिन्दी कविता में अब एक स्थापित नाम है जिनकी कविता एक अलग पहचान बनाती है. टापरी जैसी कविता और ग्रामीण परिवेश से चुनकर वे जो बिम्ब रच रहे थे वे बिम्ब अब विश्व परिदृश्य तक जा पहुंचे है और जहां वे बढ़ती हुई ग्लोबल व्यवस्था में तानाशाही प्रवृत्ति के खिलाफ बहुत तीखा तंज कसते है. जहां वे दादी के गेंहूं बीनने की बात करते है वही वे एक आत्महंता आदमी की त्रासदी की बात भी करते है और संवेदनाओं का ऐसा जाल बुनते है कि पाठक बरबस ही कविताओं को आत्मसात करने लगता है. जीवन और आत्महत्या के बीच सिर्फ एक ही क्षण होता है और यदि वह टल गया तो जीवन बच जाता है, इसे वे बखूबी अपनी कविता में चित्रित करते है.  लीलाधर मंडलोई से सही लिखा है कि वे एक अलग प्रकार के कवि है जिनके यहाँ लोक की  नातेदारियाँ, सपनों और संघर्षों के तर्कों की अपनी निजता है. दलालों के देश जैसी कविताओं के साथ वे अपने समाज के आत्म रक्षा के सबक में गुंथे हुए है और आगाह करते हुए बहादुर पटेल बहुत आगे तक जाते है. बहादुर की कविताओं का दूसरा काव्य संकलन "सारा नमक वही से आता है" अंतिका प्रकाशन गाजियाबाद से आ रहा है, जो उनकी कव

संत कहाँ सो सीकरी

    देश की आजादी के बाद से धर्म को हमने दुर्भाग्य से लोकतंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा माना और इसका इस्तेमाल हर नेता ने गाहे-बगाहे किया और नतीजा आज सामने है. रामपाल के बहाने से देश में चली आ रही संत परम्परा को आघात लगा है और जिस तरह से हरियाणा सरकार आज एक संत के सामने मजबूर दिखाई दे रही है वह बेहद चिंतनीय है.  कांग्रेस ने पिछले छः दशको में इस परम्परा को समृद्ध किया और आज भाजपा इसी तरीके को इस्तेमाल करके वोट जुगाड़ने की कवायद कर रही है. जिस तरह से इस रामपाल के आश्रम से पेट्रोल बम, हथियार, गैस सिलेंडर और पत्थर जैसी सामग्री मिली है वह एक आश्रम की श्रद्धा और शब्द पर ही सवाल उठाती है, साथ ही अपने भक्तों को जिनमे बच्चे और महिलायें शामिल है, जिस अंदाज में घेरकर यह तथाकथित संत इस्तेमाल कर रहा है वह भी समाज के लिए घातक है.  यह समझना दिलचस्प होगा कि आर्य समाज का विरोधी और एक प्रगतिशील कबीरपंथी इंजिनियर कैसे इतना निर्मम हो गया कि क़ानून और प्रशासन को धता बताकर वह तानाशाह बन बैठा है.  यह स्पष्ट है कि बगैर राजनैतिक संरक्षण के इस देश में कोई कुछ नहीं कर सकता. अब समय आ गया है कि सरकार धर्म और स

जीवन की पहली किताब ....नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं

आखिर जिन्दगी की पहली कहानी की किताब आ ही रही है. सन 1995 से 2000 और फिर सदी के पहले दशक में लिखी कहानियां कई थी, छांटने का बड़ा काम था, कई दिनों से बल्कि दो सालों से चल रहा था, लगातार आलस, घूमने की यायावर शैली, और व्यक्तिगत परेशानियों के कारण समय ही नहीं मिल पा रहा था शायद यह कहना ज्यादा मौंजू होगा कि मै जानबूझकर टाल रहा था. नर्मदा नदी से ना जाने क्यों मुझे बहुत लगाव है, बहुत लम्बी कहानी और सन्दर्भ है और इसलिए इसका शीर्षक भी मैंने "नर्मदा किनारे से बेचैनी की कथाएं" रखा है. इस बीचा हमारे गुरु  Prakash Kant , मित्रों में  Sunil Chaturvedi   Bahadur Patel   Manish Vaidya   Dinesh Patel   Satya Patel   Sonal Sharma  की डांट पड़ रही थी, फरवरी 14 के पुस्तक मेले में अनुज  Jitendra Srivastava  ने भी आग्रह किया और आख़िरी में एक दिन अग्रज  Aaditya Lunavat  के साथ बहादुर और सुनील भाई थे तो बस अंतिम वार्निंग मिल गयी. तुरंत श्रद्धेय  Purushottam Agrawal  जी से आग्रह किया तो उन्होंने सहर्ष ब्लर्ब लिखकर दे दिया और  Gouri Nath  जी ने इसे छापने का जिम्मा लिया. बस इस तरह यह कि

एक बड़ी पार्टी का इस तरह से ख़त्म हो जाना

  देश की आजादी में शरीक होने का श्रेय कांग्रेस हमेशा से लेती रही है और जाहिर है देश की सबसे बड़ी पार्टी थी जिसने लम्बे समय तक देश पर राज किया. इंदिरा गांधी भी आपातकाल में सत्ता हारने के बाद तीन सालों में फिर से पुरी ताकत के साथ खडी हुई और फिर से सत्ता पर काबीज हुई परन्तु पिछले दस बरसों में जिस तरह से इस पार्टी के सितारे गर्दिश में गए है वह शोचनीय है. डा मन मोहन सिंह ने कठपुतली प्रधानमंत्री का रोल बखूबी निभाया यह हम सब जानते है, वे पार्टी की छबि सुधारने के लिए कुछ कर भी नहीं सकते थे. जागरुक होती देश की जनता ने धीरे धीरे कांग्रेस को हाशिये पर धकेलना शुरू किया. भ्रष्टाचार का मुद्दा और अन्ना का आन्दोलन इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ था और फिर जो कांग्रेस की गाड़ी बिगड़ी है वह पटरी पर नहीं आ पाई. सोनिया और राहुल की व्यक्तिगत मिल्कियत बनी पार्टी में प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह, शरद पवार से लेकर चिदंबरम जैसे नेता थे और आज भी है परन्तु वंशवाद की परम्परा और लगातार लचीले होते अकुशल नेतृत्व के कारण कांग्रेस की दशा आज यह हो गयी है कि एक समय में सहोदर रहे सारे दल भी छिटक कर दूर हो गए है