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Showing posts from October, 2014

सलाम जज्बे और हिम्मत को.........Clean India

सलाम जज्बे और हिम्मत को। इस तरह से यदि हम सब मेहनत कर लें तो स्वच्छ भारत सच में नामुमकिन नहीं।

Wish List

भागती-हांफती और दौड़ती और लगभग अपने चरम पर पहुंचकर पूर्ण आकार लेती जिन्दगी में क्या अधूरा रह जाता है कि हम मोह से मुक्त नहीं हो पाते और बस एक आह भरकर फिर से एक "विश लिस्ट" बनाने बैठ जाते है..... यह विश लिस्ट ही जीवन है या पूर्ण विराम के मुहाने पर खड़े हांफते हम जो लगातार मिट्टी में मिलने को तत्पर बस यूँही इंतज़ार कर रहे है??? मिट्टी, हवा, पानी और हर वो चीज जो हमें विलोपित कर देगी और एक दिन यहाँ से गुजर कर हम लोग भी काल कलवित हो जायेंगे, जैसे हो जाती है एक मासूम चिड़िया और एक बाज, जैसे ख़त्म हो जाते है सिकंदर और चंगेज, जैसे ख़त्म हो गए सपने और चंद मीठे ख्यालात ........आमीन !!!

भ्रष्टाचार से मुक्ति - अभी मंजिल दूर है.

भारत में भ्रष्टाचार को कमोबेश एक अनिवार्य प्रक्रिया के तहत संस्कार के रूप में मान लिया गया है और सभी सरकारी और गैर सरकारी कार्यों और प्रक्रियाओं में इसे एक आवश्यक सोपान की तरह देखा जाने लगा है. इसे इस तरह भी देखा जाना चाहिए कि जिन संस्थाओं की महती जिम्मेदारी इसे आजादी के बाद हटाने की थी उन्ही संस्थाओं और व्युँक्तियों ने अपने निजी स्वार्थों के तहत इसे ना मात्र फलने -फूलने दिया बल्कि इसे पोषित भी किया फलस्वरूप आज इसके विशाल वट वृक्ष के नीचे अनेक लोगों के घर और परिवार पल रहे है. मप्र में आये दिन आपको एक सनसनीखेज खबर पढ़ने को मिलाती है जिसमे वरिष्ठ अधिकारियों से लेकर चपरासी तक इस प्रक्रिया में लिप्त पाए जा रहे है. ताजे मामले में तमिलनाडू की मुख्य मंत्री जयललिता का केस सामने है जिसमे उन्हें कोर्ट से जमानत मिल गयी है. चीन में भ्रष्टाचारियों को सीधे मौत की सजा मिल रही है और हम अपने यहाँ रिआयत बरतते हुए घोषित अपराधियों को खुले आम छोड़ रहे है. अब सवाल यह है कि जिन अच्छे दिनों की कल्पना में भारतवासी जी रहे है या सुनहरे कल का सपना संजो रहे है क्या वह इन्ही अंधे गलियारों से होकर गुजरेगा? हमें स

निष्कर्ष

निष्कर्ष ********* याद है मुझे अच्छे से वो जुलाई दो हजार आठ का छब्बीसवां दिन था  और  भोपाल से सीधा पहुंचा था अस्पताल में, माँ के आप्रेशन का बारहवां दिन था भाई ने बताया कि आज सारे दिन बोलती रही है माँ, बहनों को याद किया और अपने नौकरी की पहली हेड मास्टरनी को भी, खूब बोली है सबसे आज  और घर जाने की भी, जिद की है कि मरना घर ही है. पुरी शाम और रात बोलती रही मुझसे और अचानक भोर में पांच बजे मशीनो पर थम गयी धडकनें माँ की और मै देखता रहा  उन बेजान मशीनों को, जो एक इंसान में प्राण डाल रही थी,  ख़त्म हो गयी थी दुनिया मेरी सत्ताईस  तारीख को माँ के बिना, ठीक छह बरसो और दो माह बाद भाई को भी अस्पताल में रखा था शुरू में तो बेहोश था पर चौथे दिन बोलने लगा था  बड़ी जांचों और इलाज के बाद, खूब बोला, इतना कि ना जाने किस किसको याद किया  उस दिन उसने, सारे आईसीयु में खुशी की लहर थी, सारे रिश्तेदारों से बोला, बेटे को दी हिदायत,  जीवन भर स्वस्थ रहने की, पत्नी को समझाया  और मुझे देने लगा निर्देश कि थोड़ा स्वाभाव बदलूँ नौकरी करूँ ढंग से अपने सिद्धांतों को ना त्यागूँ आईसीयू के बा

मध्यप्रदेश और ग्लोबल मीट इंदौर

मालवा के देवास, पीथमपुर से लेकर लेबड घाटा बिल्लोद या सीहोर तक देखिये उद्योगों को, सीहोर की गन्ना फेक्ट्री, क्षिप्रा के बरलाई की गन्ना फेक्ट्री, इंदौर के मिलें, उज्जैन की विनोद मिल, और आसपास के अनेक उद्योग जो बंद हो गए और हर घर में बेरोजगारों की फौज इकट्ठा हो गयी है जो आये दिन हिंसा और तनाव का निर्माण करती है, यही बेरोजगार और तनाव ग्रस्त लोग महिलाओं पर हिंसा कर रहे है, आये दिन चैन चोरी, डकैती, बलात्कार और लूट की घटनाएँ बढ़ रही है. उद्योगों के बंद होने से घर घुट गए है, परेशान  लोग और मुसीबतों में पड़ गए है, ना उजाला है ना कोई संभावना, दिक्कत ये है कि इन अँधेरे गलियारों में कोई चकाचौंध नहीं है और इन बेबस घरों में कोई झांकने नहीं जा रहा, बच्चे कुपोषित हो रहे है, और युवा टुकुर टुकुर आँखों में सपने लिए अंधे हो गए है, कोई उम्मीद की किरण नजर नहीं आती, धूर्त और चालाक एनजीओ इन्ही के नाम पर कौशल उन्नयन, दक्षता और विकास के नाम पर अपनी दूकान चला रहे है, नतीजा यह है कि हर तीसरे घर में छोटी मोटी किराने की दूकान खुल गयी या कुछ और इसी तरह का काम... प्रदेश में पिछले दस बारह वर्षों